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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद इतिहास जयविजय - तपागच्छीय देवविजय आपके गुरु थे । इन्होंने सं० १६६० में 'शकुन दीपिका चौपाई' की रचना डूंगरपुर में की। यह रचना आनन्द काव्य महोदधि में प्रकाशित है ।" इसका प्रारम्भ इस प्रकार है १६४ सकल बुद्धि आपइं सरसति, अमीसमी वाणी वरसती, अज्ञान तिमिर आरति वारती, नमो नमो भगवती भारती । रचनाकाल -- व्योम रस रविचंद वषाणि, संवछर हइडउ ओ आणि, सरद ऋति नइ आसो मास, राका पूर्णचन्द्र कलावास | यह चौपाई वागड देश के गिरिपुर नामक गाँव में जोगीदास के आग्रह पर लिखी गई थी । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ देखिये भगता सवि लहीइ रिद्धि, ओ भणतां पामइ वली बुद्धि, जयविजय नइ परमाणंद, भणतां गुणतां सदा आनंद । ये सुलेखक और प्रतिलिपिकार भी थे । इन्होंने सं० १६६८ में 'संग्रहणी ' मूल की प्रतिलिपि और सं० १६७१ में शैक्षोपस्थान विधि की प्रति लिखी थी । जयविजय II - - आप तपागच्छीय हीरविजय सूरि की परम्परा में उपाध्याय कल्याणविजय के शिष्य थे । उन्होंने ही रविजय पुण्यखाणि सञ्झाय सं० १६५२ के बाद लिखा जो जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित है । इनकी दूसरी रचना कल्याणविजय गणि नो रास सं० १६५५ आसो शुक्ल ५ को लिखी गई जो जैन ऐतिहासिक रासमाला भाग १ में प्रकाशित है । इन्होंने सं० १६६१ में 'श्री सम्मेत शिखर रास' लिखा जो प्राचीन तीर्थमाला संग्रह में प्रकाशित है। हीरविजय सूरि पुण्यखाणि संझाय' का आदि- प्रणमिय पास जिणंददेव संपय सुहकारण, संखेसरपुर मंडणउ दुह दुरीय निवारण | पुण्यखाणि गुरुहीरनी ओ पभणु मनि आणंद, भविण जह सहु सांभलउ जिम लहु परमाणंद । १. अगरचन्द नाहटा - परम्परा पृ० ९१ २. जैन गुर्जर कबिओ भाग १ पृ० ३९४; भाग ३ पृ० ८८१ (प्रथम संस्करण ) भाग २ पृ० ३ ० ( द्वितीय संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३१७-३२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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