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________________ जयनिधान १६१ चरित रास का रचनाकाल द्वितीय संस्करण में इस प्रकार दिया गया है वाण सरस रस ससधरई संवच्छरि रे आसोजहिं मासि, सामल त्रीज दिनइ भलई कवि वासरि रे पूगीमन आस ।' रचना का आदि-सरस मधुर अमृत जिसी श्री जिनवर नी वाणि, हृदय कमलि समरी करी कहिसु कथा गुणषाणि ।१। अंत-जयनिधान वाचक भणइ नरनारी रे जे निसुणइ अह, रिद्धि वृद्धि घरि संपजइ जस मंगल रे सुख विलसइं तेह । 'कूर्मापुत्र चौपइ' का प्रारम्भ इस प्रकार है त्रिभुवनपति बधमान जिनेश्वर, अबुलीबल प्रणमी परमेश्वर, राय सिधारथ त्रिसलानंदन, सेवक जनमन दुख निकंदन । कूर्मापुत्र कुमर गुण गाऊ, मन सुध केवल पावन भाऊ । गृह वेसइ केवलसिरि वरियउ, भवजल थी आयण उधरियउ । रचनाकाल –सत्तरि दुई अधिक सम्बन्ध, सोलह सइ अहइ संवच्छरि, पोसह सुदि नवमी वासरि, देरावर सोहइ भासुर । इसमें कूर्मापुत्र का चरित्र चित्रित है जिसने घर बैठे ही केवलज्ञान प्राप्त कर लिया था। लेखक सागरचन्द्र की आचारजिया शाखा से सम्बन्धित था । सम्बन्धित पंक्तियाँ देखिये--- खरतरगछि सागरचन्द आचारिज साखि मुणिंद, वाचक रायचन्द्र सुसीस, जयनिधान सगुण सुभ दीस । अठार नातरां सञ्झाय (गा० ६३, सम्वत् १६३६) का रचनाकाल इस प्रकार बताया है। सम्वत्सोल छतीसइ वरसे, खरतरगछ जिनचन्द सुरीस, रीहड शाखा मेरु समान, तेजइ दीपइ अभिनव भान । तासु सुपसाय करी शुभ दिवसे, वाचक रायचन्द सहगुरु सीसइ, ओ सम्बन्ध कहिउ लवलेस, भणतां नवनिधि हुइ निसदीस । यशोधर चरित्र अथवा रास सम्वत् १६४३ की रचना है। इसमें अति लोकप्रिय पात्र यशोधर का चरित्र चित्रित है । कवि ने लिखा है१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १६४ (द्वितीय संस्करण); - भाग १ पृ० १२७, भाग ३ पृ० ५७५ और ७३५, १५१२ (प्रथम संस्करण) ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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