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उद्धृत किए जा रहे हैं
गच्छ धोरी गाजे गुहिर विमलचन्द्र वडवार, पट्टोधरण प्रगटीयो जयचंद जगे आधार । ४६ । जे राजा परजाह जे सहु को नामे शीस । जयचंद आयो जोधपुर पुगी सबहि जगीस । ४७ । '
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
(वाचक) जयनिधान - खरतरगच्छीय सागरचन्द सूरिशाखा में रायचन्दगणि के आप शिष्य थे । आप अच्छे कवि थे और आपने अनेक काव्य ग्रन्थ लिखे हैं । आपकी निम्नांकित रचनायें उपलब्ध हैंचौबीसजिन अंतराकारस्तवन सं० १६३४; १८ नाता संझाय सं० १६३६ (६३ गाथा); यशोधर रास सं० १६४३; धर्मदत्त धनपति रास ( गा० ३२० ) सं० १६५८, सम्मेतशिखर यात्रा स्तवन सं० १६५९, सुरप्रियरास ( गा० १६७ ); सं० १६६५; मुलतान मूर्मापुत्र चौपड़ ( गा० १५९)सं० १६५९ देरावर; कामलक्ष्मी वेदविचक्षण मातृ पुत्रकथा चौपइ ( गा० १०५) सं० १६७९ और नेमिनाथ फाग । श्री देसाई ने इनकी सुरप्रिय रास में दिये गए रचनाकाल का अर्थ सं० १५८५ लगाकर इन्हें १६वीं शताब्दी का कवि माना था । रचनाकाल इस प्रकार बताया है
वाण सुर सर ससधरइ संवत्छरि रे आसोजह मांसि, सामल त्रीज दिनइ भलइ, कवि वासरि रे पूजीमन आस ।
श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ के भाग ३ पृ०५७५ पर रचनाकाल सुधारकर १६६५ स्वीकार कर लिया है और कहा है कि-बाण सुरसर ससधरई' के बदले वाण सुरस रस सस धरइ' वाचना चाहिये और तब रचनाकाल सं० १६६५ होगा । कूर्मापुत्र चौपड़ का रचनाकाल देसाई ने सं० १६७२ बताया है । अब यह तो अविश्वसनीय लगता है कि एक ही कवि की एक रचना सं० १५८५ की हो दूसरी सं० १६७२ की, अर्थात् दो रचनाओं के बीच ८७ वर्ष का लम्बा अन्तराल असम्भव लगता है इसलिए सुरप्रिय रास का रचनाकाल सं० १६६५ ही उचित है और यही समय श्री अगरचंद नाहटा ने भी माना है । सुरप्रिय
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २९६ (द्वितीय संस्करण )
२. अगरचन्द नाहटा - परम्परा पृ० ७५-७६
३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १३७ (प्रथम संस्करण )
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