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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रसरत्न रास- इन्होंने रायचन्द सूरि के सम्बन्ध में 'रसरत्न रास' नामक ऐतिहासिक काव्य सं० १६५४ में खंभात में लिखा। यह रचना ऐतिहासिक रास संग्रह में प्रकाशित है। इसमें मंगलाचरण के बाद जंबूद्वीप और गुर्जर देश की प्रशंसा है जहां के जंबूसर नगर में जावडसा दोषी की पत्नी कमल दे की कुक्षि से सं० १६०६ भाद्र वदी १ रविवार को राजमल्ल का जन्म हुआ था। एक बार बिहार करते समरचन्द्र सूरि जंबूसर पहुँचे। किशोर राजमल्ल इनसे प्रभावित हुआ और दीक्षा लेने का निश्चय किया। सम्वत् १६२६ वैशाख में वे दीक्षित हुए। उस समय सोमसिंह और उनकी पत्नी इन्द्राणी ने महोत्सव किया और रायमल्ल का नाम रायचंद पड़ा। इन्होंने तत्पश्चात् खुब शास्त्राभ्यास किया और योग्य होने पर सूरिपद प्राप्त किया। इनके अनेक शिष्य एवं प्रशंसक हुए। कवि इनके सम्बन्ध में लिखता है
वसइ त्रंबावती नयरि मझारि, कलाकुशल रायमल्ल कुमार । देखी जन हरषइ मनि घणउ, मानव रुपिइं सुरसुत भणउं ।'
२२ ढाल में २५६ कड़ी की यह रचना काव्यत्व की दृष्टि से भले अधिक महत्व की न हो किन्तु इतिहास और धर्म की दृष्टि से उपेक्षणीय नहीं है। यह रचना कुंवरविजय की प्रार्थना पर लिखी गई और इसकी प्रति भी उन्हीं की लिखित प्राप्त हुई है। इसकी भाषा मरुगुर्जर है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार है
आदि जिणवर आदि जिणवर अजित जिननाथ, श्री सम्भव अभिनंदनह सुमति पदमप्रभ सुपास सुन्दर, चन्द्रप्रभ उल्हासकर सुविधि शीतल श्रेयांस संकर, वासुपूज्यनइं विमल जिन अनंत धर्म श्री सन्ति, कथुअर मल्लि मुनि सुव्रत नभिनेमि धनकंति ।१।२
x मुनि कुंवर जी गणिवरु प्रार्थनि भगति जगीस, गणि श्री जयचंद वीनवइ पूरउ मनह जगीस ।२५६। अन्तिम वस्तु इस प्रकार है
१. ऐतिहासिक रास संग्रह पृ० २९-३० २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २९४ (द्वितीय संस्करण)
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