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________________ जयकुल - जयचंद १५७. कुल भी लिखता है यथा अपनी रचना 'तीर्थमाला- त्रैलोक्य भुवन प्रतिमा संख्या स्तवन' में वह लिखता हैपंडित श्रेणि शिरोमणि अ लक्ष्मी कुल गणि सीस, जयकुल जनम सफल करु, गाइआ श्री जगदीश ।। सम्भावना है कि या तो ये जयकुशल और लक्ष्मीकुशल रहे होंगे या इन दोनों का नाम जयकुल और लक्ष्मीकुल ही रहा होगा। रचना का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ हैप्रणमु माता श्री सरस्वती, जे तूठी आपइ शुभ मती। निज गुरु चरण कमल वंदेवि, विद्यानायक मनि समरेवि । तीरथमाल रच्यु मनरंगि, ऊलट अच्छइ घणु मुझ अंगि। सुपायो भवियण जे जगि जाण, भणयो प्रहि ऊगमतइ भाण ।' यह रचना सं० १६५४ आसो वदी १० सोमवार को रची गई जैसा कि अन्त में कलश से सूचित होता है- . विक्रमनृप थी संवछर सोल, चउपना वरसि आसो वदि रंगरोल,. पूर्णा तिथि दसमी सोमवार जयकार, तवीआ प्रभु भगति हरष धरी अनिवार ।९२ यह कुल ९२ कड़ी की रचना है। रचना की भाषा सरल मरुगुर्जर है। जयचंद-आप पार्श्वचंद्र की परम्परा में समरचंद्र के शिष्य रायचंद्र के प्रशिष्य एवं विमलचन्द्र के शिष्य थे। आप मूलतः बीकानेर के ओसवाल थे। आपके पिता जेतसिंह और माता का नाम जेतल दे था। आप विमलचन्द्र सूरि के पट्टधर थे। इन्हें सं० १६७४ में आचार्य पद प्राप्त हुआ और सं० १६९९ आषाढ़ सुदी १५ को इनका स्वर्गवास हुआ। इसी समय अहमदाबाद में शांतिदास सेठ के प्रयत्न से सं० १६८० में सागर पक्ष की आचारजीया शाखा और भट्टारकीय शाखाओं का विभाजन शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो गया। पुजा ऋषि जो १२३३२ उपवास के लिए प्रसिद्ध हैं, इन्हीं जयचन्द सूरि के पास रह कर तप करते थे। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८२४ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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