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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'प्रेम विलास प्रेमलता चौपाई' सं० १६९३ भाद्र शुक्ल ४-५ रविवार को जलालपुर में रची गई, इसकी भाषा राजस्थानी हिन्दी या मरुगुर्जर है। आदि-प्रथम प्रणमि पय सरसति, गणपति गुणभंडार,
सुगुरु चरण अंभोज नमि, करूँ कथा विस्तार । रचनाकाल-संवत सोलह सै त्रेयानु भाद्र मास सुकल पख जानु,
पंचमि चौथ तिथै संलझना, दिन-रविवार परमरष मगन । दोहा-सिंध नदी के कंठ पइ,, मेवासी चोफेर,
राजावली पराक्रमी, कोउ न सकै घेर । इसी क्रम में कवि ने अपना परिचय भी दिया है, यथा
तहां बसै जटमल लाहोरी, करनैकथा सुमति तसु दोरी।
नाहरवंश न कछु सो जान, जे सरसती कहैं सो आने । गोराबादलरी बात- इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह सं० १६८६ भाद्र ११ को लिखी गई। इसकी भाषा राजस्थानी हिन्दी है। इसे पं० अयोध्या प्रसाद ने तरुण भारत ग्रंथावली क्रमांक ३४ प्रयाग से प्रकाशित कराया है। इसमें अलाउद्दीन खिलजी द्वारा रतनसेन पर चढ़ाई करने के समय गोरा बादल के युद्ध, उनकी स्वामिभक्ति और वीरता का सुन्दर वर्णन है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार किया गया है
चरण कमल चित लाय, समरूं श्री श्री सारदा, सुहमति दे मुझ माय, करुं कथा तुहि ध्याइ के। जंबूदीप मझार, भरत खंड सब खंड सिर,
नगर तिहां इकु सार, गढ़चित्तौड़ है विषम अति । रचनाकाल-गोरइ जु बादल की कथा, अब भइ संपूरन जान,
संवत सोलइ सय छयासी, भला भाद्रव मास ।
एकादशी तिथि बार के दिन करि धरि उल्लास इसमें भी कवि ने अपना परिचय दिया है, यथा
तिहां धरमसी को नंद नाहर जाति जटमल नाउं,
तिण करी कथा बणाय के, बिचि सुबला के गाउं । इसकी अनेक प्रतियाँ विविध ज्ञान भण्डारों में उपलब्ध हैं, इससे इस रचना की लोकप्रियता का अनुमान होता है।
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