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जटमल
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जिहां पातसाह जहांगीर, जिसका बाप अकबर मीर । इसके अंत में कवि कहता है
लहानूर सुहावना, देख्या होत आनंद,
कवि जटमल के-न करी, सुनत होत सुखकंद । कवि जटमल का भाषा प्रयोग पर जबरदस्त अधिकार था। वे जिस खुबी से खड़ी बोली या हिन्दुस्तानी शैली का प्रयोग कर लेते थे उतनी ही उत्तमता से हिन्दी या हिंदवी का। इनका 'स्त्री गुण सवैया' हिन्दी की रचना है। इसकी भाषा हिन्दी और छन्द हिन्दी का अपना है। स्त्री की शोभा का वर्णन करता हुआ कवि लिखता हैकुरंग से नयन कटि केहर तई अति,
कृश कुंवल सखासी गति गज की विशेषि है । कोकिल से कंठ कीर नाक सो कपोत ग्रीव,
चलत मराल चाल सुन्दर तुदेखि है । कुसुम अनार से कपोल देह केतकी सी,
कवल से कर नाम केसूफल रेखि है । अधर अरुण बिंब दाढ़ौ दन्ति ठौंडी अम्बि,
जटमल कुच श्रीफल स्त्रीय हसि देखि है।' इसी प्रकार स्त्रियों पर ही इन्होंने 'स्त्री गजल' भी लिखी है, इसमें स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग की शोभा-शृंगार का वर्णन सरस भाषा शैली में किया गया है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
सुन्दर रूप गुण गाठी कि, देखी बाग में ठाढ़ि कि,
सखियाँ बीस दल है साथ, नावै रंग रातें हाथ । इन्होंने 'बावनी' (५४ गाथा) की रचना ब्रज भाषा मिश्रित राजस्थानी या ढूढाणी में की है, इसका आदि देखिये
ॐ ॐकार अपे ही आपे, दिगर न कोइ दूजा, जां नर बाबर मांसल तारां अजब बनाइस दूजा। बजै बाउ अवाज इलाही जटमल समझण भूजा,
आपण जोगा वचन न अहैं समझण अमरत कूजा ।। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २७४ (द्वितीय संस्करण)
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