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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहन् इतिहास श्रीपति ऋषि पंडित नमु दुषमकालइ धन धन ,
धन धन रत्नत्रय सिंउ सोभता ।' जटमल-ये नाहरवंशीय ओसवाल श्रावक धर्मसी के पुत्र थे । ये लोग मूलतः लाहौर के निवासी थे किन्तु जलालपुर में रहने लगे थे। आप राजस्थानी हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार हैं । आपने अपने पूर्वजों के निवास स्थान लाहौर पर लाहौर गजल लिखी जो किसी शहर की प्रशंसा में लिखी संभवतः पहिली गजल है। इसकी देखा देखी परवर्ती जैन कवियों ने लगभग ५० से अधिक नगर वर्णनात्मक गजलें लिखीं जिनमें से कुछ का वर्णन १६वीं शताब्दी में ही कर दिया गया है । कवि खेतल ने भी लाहौर गजल लिखी है। इसके अलावा उदैपुर गजल, चित्तौड़ गजल आदि इस प्रकार की अनेक रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है। श्री अगरचन्द नाहटा ने 'कविवर जटमल नाहर
और उनके ग्रन्थ' नामक एक लेख हिन्दुस्तानी में प्रकाशित कराया था जिसमें जटमल की रचनाओं का विस्तृत विवरण है। प्रेमविलास, प्रेमलता चौपइ, बावनी, स्त्री गजल और गोरा बादलरी बात, इनकी उल्लेखनीय रचनायें हैं। इनमें 'गोरा बादल री बात' सर्व प्रसिद्ध है।
रचनाओं का विवरण -लाहौर गजल-यह खड़ी बोली में लिखित गजल है । कवि लिखता है
देख्या सहिर जब लाहोर, विसरै सहिर सगले और । रावी नदी नीचे बहै, नावें खूब डाढ़ी रहैं।
अद्भुत जैनों के प्रासाद, करते कनिक गिरि सौं वाद, देखी धरमसाला खूब, द्वारे किसन के महबूब । देखा देहरा इक खास, कीया फिरंगीयानै वास,
बेगम की भली मसीत, लागा तीन लाख जवीत । इसमें खूब, महबूब, खास आदि उर्दू के शब्द प्रयोग और खड़ी बोली का प्रयोग ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उस समय दिल्ली में जहाँगीर का शासन था, यथा१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १८२ (प्रथम संस्करण) और भाग ३
पृ० ६४७-४८ (प्रथम संस्करण) २. वही
भाग ३ पृ० २७३ (द्वितीय संस्करण)
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