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________________ १५१ चारुकीर्ति - जगाऋषि रचनाकाल इस प्रकार लिखा है सोलास साठे शुभवर्ष, फालगुण शुक्ल पूर्णिमा हर्ष ।' इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं बारबार या विनती जाण, भूलो अक्षर आणौं ठाण, पंडित हासों को मति करै, क्षमा भावमुझ उपरि धरौ। जगाऋषि-आप तपागच्छीय विजयदान की परम्परा में श्रीपति ऋषि के शिष्य थे। अपने सं० १६०३ में 'विचारमंजरी' नामक कृति रची। कुछ विद्वान् इसके रचनाकार का नाम गुणविमल बताते हैं, पर कोई ठोस आधार नहीं मिलता। आप चन्द्रगच्छ की वीरी या वयरी शाखा से सम्बन्धित थे। इस रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है वंदिय वीर जिणेसर देव, जासु सुरासुर सारइ सेव, पभणिसु दंडक क्रम चउवीस, अक अंक प्रतिबोल छबीस । गणधर रचना अंग उपांग पन्नवणा सुविचार उपांग, तेह थिकी जाणी लवलेस, नाम णाम जूजूआ विसेस ।' रचनाकाल-संवत सोल त्रीडोतरि, विचार मंजरी ने रची अह भणी निज सद्दवहि रे । रत्नत्रय जुते लहि ते लहि अविचल पदवी सिधनी । इसमें २४ दंडक का वर्णन है, यथा इम चवीसे दंडक करी, अन्नंत अनंती देह धरी, देहे धरी थरइ नहीं विक्कही । इसमें गुरु परम्परा इस प्रकार बताई गई है चंद्र गच्छि उद्योतकरु, वइरी शाखा मनोहरु , मनोहरु श्री आणंद विमल सूरीश्वरु । श्री विजयदान सूरींद मे दीठइ हुइ आणंद अ, आणंद ओ साथइ चरणकमल नमुं । १. डाँ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-प्रशस्ति संग्रह पृ० २१ और पृ० २८१ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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