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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह रचना 'रत्नसमुच्चय अने रामविलास' पृ० २९१ - ९५ पर प्रकाशित है । इसमें कवि ने स्वयं अपना नाम चरित्र सिंह लिखा, इसलिए श्री अगरचंद नाहटा द्वारा इनका नाम चरित्र सिंह ठीक नहीं लगता । ' आपकी अन्य रचनाओं में षट्स्थान प्रकरण संधि (९१ गाथा, जैसलमेर) चतुःस्मरण प्रकरण संधि ( गाथा ९१, सं० १६३१ जैसलमेर), खरतर गुर्वावली गीत ( गाथा २१ ), साधुगुणस्तवन (गाथा ४२), अल्पबहुत्वस्तवन सास्वत चैत्य स्तवन आदि उल्लेखनीय हैं । आपने गद्य में 'शंकित विचार स्तवन बालावबोध' सं० १६३३ झंझरपुर या सम्यकत्व स्तवन बालावबोध भी लिखा है । इनकी गद्य रचनाओं का उद्धरण उपलब्ध नहीं हुआ ।
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चारुकीति - आपने सं० १६७२ में 'वच्छराज चौपइ' लिखी । इस कवि तथा इनकी काव्यकृति का विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है । जैन गुर्जर कवियों के नवीन संस्करण में भी प्रथम संस्करण के आधार पर केवल नामोल्लेख ही किया गया है ।
छीतर - इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र ठोलिया था । ये मोजमाबाद के निवासी थे । 'होली की कथा' इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना है । यह सं० १६६० में लिखी गई थी जिसे उन्होंने अपने गाँव मोजमाबाद में ही लिखा था । उस समय मोजमाबाद नगर पर आमेर के राजा मानसिंह का राज्य था । कवि अपना परिचय देता हुआ लिखता है -
सो मोजाबाद निवास, पूजै मन की सगली आस, शोभै राय मान को राज; जिह वंधी पूरब लग पाज ।
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छीतर बोल्यो विनती करै, हिया मांहि जिण वाणी धरै, पंडित आगे जोड़े हाथ, भूल्यो हौं तो षमिज्यो नाथ । इसका मंगलाचरण देखिये
वंदौ आदिनाथ जुगिसार, जा प्रसाद पामूं भवपार, वरधमान की सेवा करें, जो संसार बहुरि नहि फिरै ।
१. श्री अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ७६
२. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९६५ ( प्रथम संस्करण ) ३. श्री अगरचन्द नाहटा - राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २०९
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