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चतुर्भुजकायस्थ - चारित्रसिंह
१४९ कवि ने इस रचना में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
कायथ नेगम कुलय हे नाथासुत भइयाराम,
तनह चतुरभुज तासके, कथा प्रकाशी ताम । दूसरे भाग का अंतिम छंद इस प्रकार है
अह कोइ भावे धरी, सुने मधुमालति विलास,
ता घरे कमला थिर रहे, हरिशंकर पूरे आस ।१४४।' मधुमालती की प्रेमकथा प्राचीन काल से प्रचलित रही है। जैन कवि इसका अपनी दृष्टि से धार्मिक उपयोग करते हैं किन्तु इस वार्ता में प्रेमकथा का लक्ष्य प्रेमकथा ही है न कि कोई साम्प्रदायिक या धार्मिक उपदेश । इसलिए शुद्ध साहित्य के विचार से यह श्रेष्ठ रचना है।
चारित्र सिंह-आप खरतरगच्छीय मतिभद्र के शिष्य थे। देसाई ने इनका नाम चारित्र सिंह लिखा है। आपकी रचना 'मुनिमालिका' काफी प्रसिद्ध है। इस पर कई संस्कृत टीकायें लिखी गई हैं । कवि ने इसका रचना काल बताते हए लिखा है
संवत सोल छत्तीस ओ श्री विमल नाथ सुरसाल,
दीक्षा कल्याणक दिनई ग्रंथ रची मुनिमाल । अर्थात् यह रचना शीतलनाथ के मन्दिर में सं० १६३६ में कवि के दीक्षा कल्याणक के दिन सम्पन्न हुई। यह मन्दिर रिणीपुर में स्थित है। रचना सूरविजय के समय की गई, संदर्भित पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
रिणीपुरइ रलीआमणउ, श्री शीतल जिनचंद, सूरविजय राज्ये सदा, संघ अधिक आणंद । श्री मतिभद्र सुगुरु तणइ, सुपसायइ सुखकार,
चारित्रसंघ बखाणीयइ, शब्द शब्द जयकार ।२ इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
रिषभ प्रमुख जिनपाय जुग, प्रणमुं शिवसुखदाय किमन उल्हास,
पंडरीक श्री गौतम आदिक, गणधर गुरु मनकमल विकास ।। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड २ पृ० २१६८-६९ (प्रथम संस्करण) २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १५८ (द्वितीय संस्करण)
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