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________________ १४८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुप्रभात मुखकमल जु दीर्छ, वचन अमृत थकी अधिक जु मीठु । इनकी रचनाओं का संक्षिप्त उल्लेख डॉ० शुक्ल ने भी डॉ० कासलीवाल के आधार पर अपनी पुस्तक 'जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी साहित्य को देन में की है। दिगम्बर कवियों की भाषा प्रायः प्रचलित हिन्दी है। थोड़े स्थानीय प्रयोग अवश्य मिल गये हैं । चतुर्भुज कायस्थ--आप जैनेतर कवि हैं। इन्होंने राजस्थानी मिश्रित पुरानी हिन्दी में 'मधुमालती री वार्ता' लिखी है। वार्ता साहित्य गद्य-पद्यात्मक होता है और राजस्थानी साहित्य का एक लोक प्रिय साहित्य रूप है। आप निगम कायस्थ कुल के नाथा के पुत्र भैयाराम के पुत्र थे । इनकी वार्ता का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है-- विधविध ताकै वर पाऊं, संकरसुत गणेश मनाऊ । चातुर सैतरि सहित रिझाऊ, रसमालती मनोहर गाऊ । इसमें लीलावती देश के राजा चन्द्रसेन के वर्णन से वार्ता का प्रारम्भ किया गया है। इसका एक अपर नाम 'मधुकुमर मालति कुमरि चरित्र' भी मिलता है। इसमें मधु और मालती की प्रेमकथा वर्णित है। यह रचना १४४७ कड़ी की है। इसके प्रथम भाग में ८८९ कड़ी है। प्रथम भाग का अन्तिम छंद इस प्रकार है संपूरण मधुमालती कलश चढ़े संपूर, श्रोता बकता सबन कुं सुखदायक दुःखदूर ।८८९) दूसरे भाग का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ हैसरसति नाम लेय कवि, करि गनपति जुहार, कवि जन साचे अक्षरे कहे मधुमालति सार । सकल बुद्धि दिये सरसति बंदू गुरु के पाय, मधुमालती विलास कौं कहत चतुर्भुजराय। कवि इसे सभी कथाओं में श्रेष्ठ कथा मानता है, यथा वनसपती मौं अंबफूल, वदरस मै उपजत संत, कथा मांहि मधुमालती, छ रे ऋतु मांहि वसंत । १. डॉ० हरीश गजानन शुक्ल-जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी साहित्य को देन पृ० ८४-८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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