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________________ १४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुणप्रमोद गुण आगला, गु० समयकीरति सुधसाध, विनय कल्लोल मुनिवर भलउ, गु० हरष कल्लोल पदलाध ।' कवि कथा को नवरस सहित कहने की कल्पना करता है यथा : धन्य तिके नर जाणीयइ, धरम करइ निसदीस, नवरस सहित कथा कहूँ, मनमांहि धरिय जगीस। इसमें धर्म कार्य पर जोर दिया गया है, कवि लिखता है : धरम करउ इम जाणीनइ जिम पामउ भवपार, * पापबुद्धि धर्मबुद्धिनउ कहुं सुणिज्यो अधिकार । रचनाकाल-व्यासीमइ संवच्छरइ अ, भाद्रव सुदि दिन नउमि, अह ग्रन्थ पूरउ थयउ अ, छसइ पचीते गाह । इसमें कुल ६२५ गाथायें हैं। रचना दो खण्डों में विभक्त है। इसमें नाना प्रकार की ढालों का प्रयोग किया गया है। कवि द्वारा दी गई गुरुपरम्परा के आधार पर श्री देसाई द्वारा वर्णित गुरु परम्परा ही उचित प्रतीत होती है। रचनाओं की कथा का आधार कथाकोश है जैसा कि कवि ने प्रथम रचना में लिखा है : कथाकोस की मैं कह्यउ ओ, मृगावती यामनी भान, संबंध सोहामणउ अ सुणंता सफल विहांण । रचनाओं की भाषा सरल मरुगर्जर है जिस पर राजस्थानी का प्रभाव स्वभावतः कुछ अधिक है। काव्यत्व सामान्य कोटि का है। रचनायें उपदेशपरक हैं। आचार्य चन्द्रकीर्ति-आप दिगम्बर भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य थे। आपकी 'सोलहकरण रास, जयकुमाराख्यान, चरित्रचुनड़ी और चौरासीलाखजीवयोनि विनती नामक रचनायें प्राप्त हैं। इन रचनाओं के अलावा कुछ स्फुट पद भी उपलब्ध हैं जो सरस एवं भावपूर्ण हैं। सोलहकरण रास में षोडशकारण व्रत का माहात्म्य ४६ पद्यों में दर्शाया गया है। इसमें दूहा, त्रोटक छन्दों के साथ राग धन्यासी, गौड़ी आदि का प्रयोग किया गया है। इसमें रचनाकाल तो नहीं है किन्तु रचनास्थान भड़ौच बताया गया है, यथा१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३५-३७ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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