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चन्द्रकीर्ति
१४५ ज्ञानकीर्ति> गुणप्रमोद> समयकीर्ति > विनयकल्लोल > हर्षकल्लोल ।' श्री नाहटा ने भी इन्हें कीर्तिरत्न (खरतर) की परम्परा में विमलरंग के शिष्य लब्धिकल्लोल का शिष्य कहा है। दोनों विद्वानों ने इन्हें खरतरगच्छीय कीर्ति रत्नसूरि की परम्परा का लेखक स्वीकार किया है और दोनों ने उन्हीं रचनाओं का विवरण दिया है। अतः इसमें सन्देह नहीं कि दोनों विद्वानों ने एक ही चन्द्रकीति का विवरण दिया है; केवल उनके गुरु के सम्बन्ध में मतभेद है।
रचनायें ---इनकी दो प्रमुख रचनाओं का उल्लेख दोनों ने किया है : यामिनी भानु मृगावती चौपइ और धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपइ, जिनका विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है ।
यामिनीभानु मृगावती चौपइ की रचना सं० १६८९ आसु शुक्ल ७ बुधवार को बाड़मेर (जैसलमेर) में की गई। यह रचना जिनराज सरि के समय में की गई इसलिए उनका भी रचना में स्मरण किया गया है और कवि ने हर्षकल्लोल को ही अपना गुरु बताया है। इसका रचनाकाल इस प्रकार कवि ने बताया है
श्री खरतरगछ राजियो ओ श्री जिनराज सूरिंद, सोलह नब्यासीयौ अ आसू सातमि चन्द । प्रथम पहर बुद्धिवारनउ प्रथम घड़ी सिद्ध जोग, श्रावक सुबीआ वैस से बाहडमेर रसभोग । विधि चैत्यालय पूजी यै अ श्री सुमतिनाथ जिणंद, कथाय पूरउ थयौ भणतां सुख आणंद । ढाल सोलै इण चौपइये विसै इकयासी अह,
कही चन्दकीरति अ, भणत सुणत उच्छाह । २ धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपइ की रचना सं० १६८२ भाद्र शुक्ल ९ मंगलवार को घडसीसर में पूर्ण हुई थी। इसमें भी वही गुरुपरम्परा कवि ने बताई है जो श्री देसाई ने दी है, यथा
कीरतिरतन सूरि परगडउ आचारिज गछधार,
लावण्यशील पुण्यधीरओ, पु० नानकीरति गुणसार १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५४८
(प्रथम संस्करण) २. वही
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