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________________ गुणसागर सूरि (२) १३९ अन्तिम छन्द-ढालभली पण बीसमी जी दान दिया थी जोइ, श्रीगुणसागर सूरि जी रे, सुधरइ छइ भव दोइ।' __मलधारी हेमचन्द्र सूरि कृत नेमिचरित पर आधारित गुणसागर कृत एक रचना 'नेमिचरित्रमाला' का उल्लेख श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९८२ पर किया है और इन्हें ढालसागर के कर्ता गुणसागर से अभिन्न बताया है किन्तु इसके नवीन संस्करण में उक्त रचना को छोड़ दिया गया है। इसमें कहीं नाम गुणसार और कहीं गुणसागर दिया गया है। संदेहास्पद होने के कारण इसका विवरण उद्धरण नहीं दिया गया है । गुणसागर सूरि(२)-आप तपागच्छीय मुक्तिसागर सूरि के शिष्य थे। मुक्तिसागर सेठ शान्तिदास के गुरु थे। इन्होंने सं० १६८३ माघ शुक्ल १३ शुक्रवार को ७२ कड़ी की रचना सम्यक्त्वमूल बारबत सञ्झाय लिखी है। आदि-वंदिय वीर जिणेसर देव, जासु सुरासुर सारइ सेव, पभणिसु दंडक क्रम चउवीस, अक अकप्रति बोल छवीस । गणधर रचना अंग उपांग, पन्नवणा सुविचार उपांग, तेह थकी जाणी लवलेस, नाम ढाम जजआ विसेस । अंत-संवत सोल जी वरस त्रासीओ जाणीई, माहा सुदी जी तेरस शुक्रवार आणींई। तपगछतारइ विजयसेन सुदी वारइं टीप लिखावी सोहामणी, इम व्रत पालो कुल अजु आलो, पाप पखालो हितमणी । सकल वाचक सोहईं भविजन मोहई मुक्तिसागर सिरताज, कवि गुणसागर सीस पभणइ, पामो अविचल राज ।७२। इनके संबंध में अधिक जानकारी के लिए प्रतिमा लेख संग्रह देखा बा सकता है। गुणसेन -आप की गुरुपरम्परा इस प्रकार थी सागरचन्द्रसूरि> महिमराज>सोमसुन्दर>साधुलाभ>चारुधर्म>समयकलश । समय१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २४२ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग १ पृ० ४९७, और भाग ३ पृ. ९८० (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १९४ (द्वितीय संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. २४२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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