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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरु कारीगर सारिखा टांकी वचन विचार, . पाथर की प्रतिमा किया पूजा लहइ अपार । इसे रागमाला, वसुदेव रास या हरिवंश प्रबंध भी कहा जाता है । इसके विषय वस्तु का निर्देश इस प्रकार किया गया है
उत्पत्ति श्री हरिवंश नी हलधर कृष्ण नरेश, नेम मदनयुग पाण्डवों चरित्रभणु सुविशेष । यादव कथा सोहामणी जे सूणसी नरनारि,
तीर्थनो फल पामसे नहि संदेह लगार ।' रचनाकाल संवत्सवर सोल छहोतरी रे मास श्रावण सुद्धि,
तिज सोम समुत्तरा, काई कसर के वारु अविरुद्ध । कुर्कटेश्वर नगर मां रे पास सामी पसाय,
संघने उच्छव पणइं कांइ रचियो रे में चरित सुभाय के । इसमें १५१ ढाल है इसीलिए शायद इसका नाम ढालसागर रखा गया है । स्थूलिभद्र गीत की भाषा पर खड़ी बोली और पंजाबी भाषा का प्रभाव द्रष्टव्य है यथा
श्री गुरुहंदी आग्या पाई, कोशा घरहि पठांवंदा है, पंच सहेली छठा मुनिवर पूछि चउमासि रहावंदा है। तखत आगरा आदि जिणंद ने चरणकमल नित ध्यावंदा,
श्री पद्मसूरि शिष्य कहइ गुणसागर संघ कल्याण करावंदा । यह रचना श्रावक मगनलाल झवेरचंद शाह द्वारा प्रकाशित है। संग्रहणी विचार चौपाई सं० १६७५ आषाढ़ शुदी १२ को लिखी गई। 'शान्ति जिन विनति रूप स्तवन (अथवा छंद) सुन्दर भक्तिभावपूर्ण विनती है । कयवना रास के आदि और अन्त की पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैंआदि-दान न देबे दलिद्रहिं, दान बिना नहि भोग,
दाने अपकीरति नहि, नहि पराभव लोग । कयवन्ने कुमार जी दान करी कर भोग,
किम पाम्यो ते सांभलो पुन्य तणा संयोग । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४९९ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ९८४ (प्रथम संस्करण)
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