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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास "सकल सारद तणा पाय प्रणमी करी,
भणिसू जिण चैत्य परिवाडि गण संभरी।' रचनाकाल - संवत सोलचमाल ओ सुहक ओ माह
धुरि शुभदिवसि हरिवसि चल्लिओ। २४ जिनस्तवन की अंतिम पंक्तियों का उद्धरण देकर यह विवरण सम्पूर्ण किया जा रहा है
उवझाय श्री जयसोम सुहगुरु, सीस पाठक गुण विनइ, खरतर महासंधि अदउ आयउ सुख थायउ दिन दिनइ।। इन बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त धर्माचार्यों पर आधारित कई श्रद्धापरक गीत भी इनके उपलब्ध हैं । ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनचंद्र सूरि, जिनसिंह सूरि और जिनराज सूरि से संबंधित गीत प्रकाशित हैं जिनमें से एकाध का परिचय पहले दिया जा चुका है। जिनचंद्र सूरि से संबंधित गीतों में ५वाँ गीत आपका है। यह ११ कड़ी का है और राग देशाख में बद्ध है । जिनसिंह सूरि गीतानि का पहला गीत गुणविनय कृत है। शाह अकबर ने युग प्रधान जिनचन्द्र सूरि के साथ इन्हें पट्टधर का सम्मान दिया। ऐसे सूगरु जिनसिंह सूरि की ६ पंक्तियों में कवि ने हृदय से प्रशंसा की है। यह गीत राग विलावल में आबद्ध है।
आप १७वीं शताब्दी के विद्वान् टीकाकार, कवि, गद्यलेखक, साधु और साहित्यकार थे । बारव्रत जोड़ि में बारह व्रतों का माहात्म्य ५६ कड़ी में लिखा गया है, यह सं० १६५५ की रचना है, इसका प्रारम्भ देखिये--
जिनह चउवीसना पाय पणमी करी, सामि गोयम गुरुनाथ हीयडइधरी, समकित सहित व्रत बारहिव ऊचलं, सुगुरु साखइ बली तत्व त्रिणइ धरूं ।
कयवन्ना चौपाई (१७३ कड़ी सं० १६५४ महिमपुर) का प्रारम्भ इस प्रकार है
पणमिय पास जिणेसर पाया, मन धरि श्रुतधर श्री गुरुराया,
पभणिसु कयवन्ना परवंध, जिन था अइ शुभनउ अनुबंध । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २१४ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ८४३ (प्रथम संस्करण)
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