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________________ गुणविनय १३५ प्रश्नोत्तर मालिका अथवा पार्श्वचन्द्रमत (दलन) चौपाई सं० १६७३ सांगानेर, एक खंडन मंडनात्मक साम्प्रदायिक रचना है। इसी प्रकार की रचना 'अंचलमतस्वरूपवर्णन' भी है जो सं० १६७४ माह शुदी ६ बुद्ध को मालपुर में रची गई थी। रचना का उद्देश्य कवि के शब्दों में अंचल थापण जिनिकरी शास्त्र विना निरमूल, सांभलता श्रवणइ हुवइ श्रुतधरनइ सिरि सूल वचन मात्र निसुणी करी मारग छोड़इ सुद्ध, धवलउ सगलउ मूढ़मति देखी जाणइ दूध । इसमें कवि ने अपने सम्प्रदाय-शाखा आदि का भी वर्णन किया है खेमराय उवझाय राय श्री खेमनी साखइ, सवि साखा महि जासु साख पंडित जन भाषइ । हुवउ पुहवि परसिद्ध पाटइ तसु सुन्दर, श्री प्रमोदमाणिक्य तासु तसुसीस जयंकर । उवझाय श्री जयसोम गुरु तासु सीस अप्रमादि, उवझाय श्री गणि गुणविनइ श्री जिनकुशल प्रसादि । इसी प्रकार की इनकी तीसरी साम्प्रदायिक रचना लुंपकमत तमोदिनकर चौपइ सं० १६७५ श्रावण वदी ६ शुक्रवार को सांगानेर में लिखी गई । मूर्तिपूजा विरोधियों का खंडन करने के लिए यह रचना की गई है । लोकागच्छ की उत्पत्ति पर व्यंग्य करते हुए कवि कहता है उतपति अहनी सांभलउ जिणपरिहू आ अह, बेवधरा किण समइ हुआ, यथा दृष्ट कहुं तेह । तपा एकावन बोल चौपाई (३८२ कड़ी सं० १६७६ राउद्रहपुर) और धर्मसागर ३० बोल खण्डन अथवा त्रिंशद उत्सुत्र निराकरण कुमति मतखंडन भी साम्प्रदायिक खंडन-मंडन से संबंधित रचनायें हैं। जयतिहुअण स्तवन बालावबोध आपकी गद्य रचना है। इन रचनाओं . के अलावा प्रत्येकबुद्ध चौपाई, अगड़दत्त रास, कयवन्ना चौपाई, गुणसुन्दरी पुण्यपाल चौपाई, धन्ना शालिभद्र चौपाई आदि चौपाइयाँ, दूहा चौपाई छन्द में विविध जैन कथानकों पर आधारित उपदेशपरक रचनायें हैं । इन्होंने शत्रुजय चैत्य परिपाटी स्तवन, वारव्रत जोड़ि और जिनस्तवन आदि कई लघु स्तवन भी लिखे हैं । शत्रुजय चैत्यपरिपाटी का प्रारम्भ देखिये१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८२८-८४३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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