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गुणविजय
रचना का उद्देश्य – ते निसुणइ हरखइ करी मंत्रीसर परबंध, धरमवंत गुण गावतां जिम हुवइ शुभ अंक वंध ।
रचनाकाल - सोलह सइ पंचावनइ, गुरु अनुराधा योगइ रे, माहवइ दसमी दिनइ मंत्री वचन प्रयोगइ रे । '
यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक प्रबन्धकाव्य है । इसकी भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न मरुगुर्जर (हिन्दी हैं) ।
ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में आठ कड़ी का एक गीत जिनराज सूरि गीतम् भी संकलित है; जिसका आदि
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श्री जिनराज सूरीश्वर गच्छधणी धुरि साधुनउ परिवार, ग्रामानुग्रामइ विहरता सखि, वरसता हे देसण जलधार । अन्त -- निर्मलइ वंशइ ऊपनउ व्रजस्वामि शाखि शृङ्गार,
श्री गुणविनय सद्गुरु ईसउ सखि बाहिवा रे मुझ हर्ष अपार । इसी संग्रह में 'खरतरगच्छ गुर्वावली' भी एक ऐतिहासिक रचना संकलित है । इसमें युग प्रधान जिनचन्द्रसूरि तक के खरतरगच्छीय गुरुओं की सूची है । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
जेसलमेरु विभूषण पास जी, सुप्रसादइ अभिरामो जी,
श्री जयसोम सुगुरु सीसइ मुदा, गुणविनय गणि शुभकामो जी । १ अंजनासुन्दरी प्रबन्ध (१६६२) में भी सम्राट् अकबर से जिनचंद्र और जयसोम आदि के मिलने का संकेत है, यथा
अकबर शाहि संभाअई जासु दस दिसि हुअउ विनय विकासु । तासु शिष्य अछइ विनीत गुणविनयति जयतिलक सुविदीत । तिहां वाचक गुणविनयइ दीठओ, पूर्व प्रबन्ध जिस्यउ मुंह मीठो । सोलहसइ बासट्ठा वरसइ, चैत्र सुदइ तेरस नइ दिवसइ । ४
ऋषिदत्ता चौपइ – (सं० १६६३) २६८ कड़ी की रचना है । इसमें महान सती ऋषिदत्ता के ब्रह्मचर्य, सतीत्व और शील का आदर्श प्रस्तुत करके लोगों को इन गुणों की शिक्षा दी गई है ।
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१. ऐतिहासिक रास संग्रह पृ० ११५ और जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय पृ० १३२
२. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
३. वही
४. जैन गुर्जर कविओ भाग २, पृ० २१७ (द्वितीय संस्करण)
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