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________________ १३२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हुआ और कल्याणमल की इच्छा पूर्ण हुई । राजा ने मंत्री कर्मचंद को चार गाँव दिये । सं० १६३५ के दुष्काल में उन्होंने खूब दान देकर प्रजा की रक्षा की। सिरोही से लूटी गई जिन प्रतिमाओं को सोना देकर छुड़ाया और तुरसम खां जिन वणिकों को गुजरात से पकड़ लाया था उन्हें भी मुक्त कराया। शत्रुञ्जय और मथरा में जीर्णोद्धार कराया। सतलज, रावी नदियों में मछली मारना बन्द कराया। उनके दो पुत्र थे भाग्यचन्द्र और लक्ष्मीचन्द्र। रायमल्ल सिंह को बादशाह ने राजा की पदवी देकर पंचहजारी बना दिया। एक बार कर्मचन्द राजा कल्याणमल्ल से रूठकर मेड़ता चले गये, तब सम्राट ने उन्हें बुलाकर सम्मान दिया। उन्होंने शाही फरमान लेकर लाहौर में जिनचंद सूरि की बादशाह से भेंट कराई और तीर्थों की करमुक्त यात्रा आदि की आज्ञा बादशाह से प्राप्त करने में सूरिजी की बड़ी सहायता की। उस समय जिनचन्द्रसूरि को युग प्रधान और जिनसिंह सूरि को आचार्य तथा गुणविनय, समयसुन्दर आदि को उपाध्याय-वाचक आदि, पद प्रदान किए गये थे। इस सबका उत्सव कर्मचन्द ने बड़ी धूमधाम से मनाया था। यह सब इस प्रबन्ध का वर्ण्य विषय है। यह रचना ऐतिहासिक रास संग्रह और जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित और पर्याप्त प्रसिद्ध है। इस रास में इस युग की प्रमुख घटनाओं और पात्रों का वर्णन होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्व है। इस परिवार में समधर, तेजपाल, कडुआ, वच्छ आदि कई सम्मानित राजपुरुष और मंत्री आदि हुए थे। कवि कर्मचन्द की प्रशंसा में लिखता है - जिमपुनिमनउ चंदलउ धरणि धवल रुचि भावइ रे, तिम श्री कर्मचन्द मंत्रवी निज कुलि सोह बड़ावरे । संग्रहीयइ गुण अकेला, दूषणलेस न लीजइ रे, राजहंस जिम जलत्यजि, सूधइ दूधइ पीजइ रे । ईसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है फलवधि पास प्रणाम करि बागवाणि समरेवि, श्री जिन कुशल मुणिंद पय हृदयकमलिसु धरेवि । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३२६-२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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