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गुणविनय
१३१ आपने नेमिदूत, नलदमयन्ती चम्पू, रघुवंश, वैराग्यशतक, संबोधसप्तति, इन्द्रियपराजय शतक आदि अनेक संस्कृत, प्राकृत के ग्रन्थों की संस्कृत में टीका की है। ___मरुगुर्जर के गद्यपद्य में रचित आपकी निम्नांकित रचनायें प्राप्त हैं-कयवन्नासंधि, सं० १६५४ बीकानेर; कर्मचंदवंशावली रास, सं० १६५६ सधरनगर; अंजनासुन्दरीरास सं० १६६२ खंखात; ऋषिदत्ता चौपइ सं० १६६३; गुणसुन्दरी चौपइ सं० १६६५, नवानगर; नलदमयन्ती प्रबन्ध सं०१६६५, नवानगर; जम्बूरास सं० १६७० बाड़मेर; धन्ना शालिभद्र चौपइ सं० १६७४ आगरा; अगडदत्तरास कलावती चौपइ सं० १६७३ सांगानेर; बारहब्रतरास सं०१६५५; जीवस्वरूप चौपइ सं०१६६४ राजनगर; मूलदेव चौपइ सं० १६७३ सांगानेर; तपइकावनबोल चौपइ सं० १६७६; शत्रुजय चैत्यपरिपाटी स्तवन सं० १६४४; कयवन्ना चौपइ सं० १६५४ और अंचलमत स्वरूप वर्णन सं १६७४ आदि। इनमें कुछ ऐतिहासिक, कुछ पौराणिक, कुछ स्तवन और कुछ साम्प्रदायिक रचनायें हैं । आप धर्मशास्त्रीय खंडन-मंडन एवं शास्त्रार्थ में पारंगत विद्वान् थे। आपने राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में दूर-दूर तक विहार करके स्वमत स्थापन एवं विरोधियों के खण्डन का कार्य किया। इनकी कुछ रचनाओं का परिचय-विवरण प्रस्तुत है___ कर्मचंद वंशावली प्रबन्ध-इस प्रबंध रचना में जैन मंत्री कर्मचंद की वंशावली दी गई है। इसके प्रारम्भ में फलौधी-पार्श्वनाथ और सरस्वती की वंदना है। सातवीं कड़ी से कर्मचंद की वंश परम्परा का वर्णन प्रारम्भ किया गया है। १४४ कड़ी तक कर्मचंद के पूर्वजों का विभिन्न राजाओं के साथ सम्बन्ध-व्यवहार आदि पर प्रकाश डाला गया है। १४५वीं कड़ी से कर्मचन्द का वर्णन प्रारम्भ हुआ है। स्मरणीय है कि इन्हीं कर्मचंद के प्रयत्न से हीरविजय और जिनचन्द्र सूरि की सम्राट अकबर से भेंट सुगमतापूर्वक हो सकी थी। ये बीकानेर के राजा कल्याणमल्ल के मंत्री थे। इनके पिता का नाम संग्राम था। इनका राजकुमार रायमल्ल के साथ अच्छा सम्बन्ध था। राजा कल्याणमल्ल की इच्छा जोधपुर की राजगद्दी प्राप्त करने की थी। इस इच्छा की पूर्ति हेतु रायमल्ल और कर्मचंद को सम्राट अकबर की सेवा में कर दिया गया। जहां उन लोगों ने अपनी सेवा परायणता और कर्मपटुता से सम्राट् को प्रसन्न कर लिया था। सम्राट् प्रसन्न
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