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________________ (गणि) गुणविजय १२७ सामायक संझाय १३ कड़ी की लघुकृति है । इसके आदि-अन्त की पंक्तियाँ निम्नवत् हैं-- आदि - गोयम गणहर प्रणमी पाय । अन्त-सामायिक करज्यो निस दीस, कहि श्री कमल विजय गुरु सीस । इसमें नित्य चर्या के रूप में सामायिक का महत्व सरल हिन्दी (मरुगुर्जर) में समझाया गया है । (गणि) गुणविजय-तपागच्छीय विजयसेनसूरि के शिष्य कनकविजय (विजयसिंह सूरि) के आप शिष्य थे। इसीलिए श्री देसाई ने विजय सिंह सूरि (विजय प्रकाश) रास का कर्ता इन्हीं को बताया था।' यह सम्भावना भी है कि इन्होंने अपने गुरु के गुणानुवाद के लिए इस रास की रचना की हो, पर जैन गुर्जर कविओ, द्वितीय संस्करण के सम्पादक ने स्पष्ट लिखा है कि वह रचना इस गुणविजय की नहीं अपितु पूर्व वणित कमलविजय के शिष्य गुणविजय की है। नामसास्य के कारण यह भ्रम हो मकता है किन्तु अभी भी इस सम्बन्ध में अनुसंधान की आवश्यकता है । अस्तु; प्रस्तुत गुणविजय की निम्नांकित रचनायें महत्वपूर्ण हैं-प्रियंकरनृपचौपाई, जयचंद्र (जयतचंद्र) रास और कोचर व्यवहारी रास । इनमें से अन्तिम रचना प्रकाशित और प्रसिद्ध है । रचनाओं का संक्षिप्त परिचय सोदाहरण आगे दिया जा रहा है प्रियंकरनृप चौपइ ( उवसग्गहर स्तोत्र के विषय में ) यह कृति सं० १६७८ आसो शु० ४ गुरुवार को प्रारम्भ होकर १३ दिन में नवलखा नामक स्थान में पूरी की गई थी। इसका आदि देखिये महिमानिधि गुज्जरधणी श्री संखेसर पास, सरसति निज गुरु मनि धरी, रचउं प्रियंकर रास । संवेगी सिर मुगुट मणि, भवजल राज जिहाज, विजयवंत वसुधातलि कनकविजय कविराज । करजुग जोड़ी पदकमल, प्रणमी प्रेमई तास, श्री उवसग्गहरा तणो महिमा करुं प्रकाश । २ १. जैन गुर्जर कविओ भाग १, पृ० ५१९ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० २२४ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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