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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में विजयसेन सूरि से दीक्षा ली और नाम कनकविजय पड़ा। सं० १६८१ में विजयदेव ने इन्हें अपना पट्टधर नियुक्त किया और नाम विजयसिंह सूरि रखा गया। उसी समय यह रास गुणविजय ने लिखा था। नथमल की संपन्नता का एक उदाहरण
मीठाई मेवा भरपूर, चोवा चंदन अगर कपूर,
नायक दे नवयौवन नारि, नाथू सुखविलसइ संसार । कर्मचंद का जन्म-राजयोग रलियामणइ, फाग रमइ नरनारि,
कर्मचंद कंवर जण्यो, जगि हआ जय जयकार ।' 'बंभणवाडमंडन महावीर फाग स्तवन' (गाथा ३६४) इसका कलश उदाहरणार्थ प्रस्तुत है
'श्री वीर वंभणवाड वसुधा भामिनी-भूषणमणी, संसार सागर तरणतारण कर्णधारक जगधणी। बह यमक जगति सुभग भगति फाग रागइं गाइउ,
गुणविजय जयकर जिनपुरंदर हृदयमंदिरि ध्याइउ ।'२ इसमें बंभणवाड स्थित महावीर भगवान का स्तवन किया गया है।
शील बतीसी-जैसा नाम से ही स्पष्ट है, इस रचना द्वारा शील का माहात्म्य स्थापित किया गया है। यह प्रकाशित कृति है। यह जिनेन्द्र स्तवनादि काव्य संदोह भाग १ पृ० ३५५-५८ पर प्रकाशित है। रचना के अन्त में कवि कहता है
घरघर घोड़ा हाथीया जी, घर घरणी मनरंग, शीयले मंगलमालिका जी, जल थल जंगल जंग। मोटा मन्दिर मालीया जी, बेठा बंधव जोड़ जय जयकार करे सह जी, धण कण कंचन कोडि । शीयले सोभागीसरो जी, श्री विजेदेव सूरींद, तपगछराय प्रशंसीयो जी, कमलवीजे जोगींद । शीयल बत्तीसी सीलनी जी, सुणी जे सेवसें शील,
गुणविजय वाचक भणेजी ते नीत लहसे लील । ३२ । ३ १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ३४१-३६४ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४१ (द्वितीय संस्करण) ३. वही पृ० १४२
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