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________________ १२४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इन पंक्तियों में छन्दप्रवाह, अलंकृति आदि गुण द्रष्टव्य है । t गुणविजय - तपागच्छ के कमल विजय > विद्याविजय आपके गुरु थे आपकी कई उत्तम रचनायें उपलब्ध हैं उनमें ७२० जिननाम स्तवन, "विजयसेन सूरि निर्वाण स्वाध्याय', नेमिजिनफाग, विजयसिंह सूरि ( विजय प्रकाश) रास, वंभणवाडमंडन महावीर फाग स्तवन, शीलबत्तीसी और सामायक संझाय आदि उल्लेखनीय हैं । इनमें से कुछ कई स्थानों से प्रकाशित भी हैं । इनका क्रमशः संक्षिप्त परिचय यहाँ - दिया जा रहा है । '७२० जिननाम स्तवन' की रचना सं० १६६८ चैत्र रविवार को जालोर में हुई । कवि ने इसमें अपनी गुरु परंपरा इस प्रकार कही है"श्री विजयसेन सूरीसरु तु भ० श्री विजय देव युवराज तु तस गछि गुणरयणायरु तु भ० सुविहित पंडित सीह तु । श्री गुरु कमलविजय जपु तु भ० विद्याविजय बुध लीह तु, तास सीस इणि परि कहि तु भ० चैत्री दिन रविवार तु, संवत सोल अडसठि तु भ० गढ जालोर मझारि तु "१ इसके अलावा अन्य रचनाओं में दी गई गुरु परंपरा से ज्ञात होता है कि ये कमलविजय के शिष्य थे । हो सकता है कि विद्याविजय जी इनके ज्येष्ठ गुरु भ्राता और विद्यागुरु भी रहे हों । यह चौबीसी २४ तीर्थङ्करों की स्तुति रूप है । इस कवि की दूसरी प्रसिद्ध रचना 'विजयसेन सूरि निवणि स्वाध्याय' जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्यसंचय और ऐतिहासिक सञ्झाय माला भाग १ में प्रकाशित है । पहले इस कृति को श्री देसाई ने कनक विजय के शिष्य गुणविजय की रचना बताया था । किन्तु द्वितीय संस्करण में इसे सुधारकर प्रस्तुत गुणविजय की रचना बताया गया है । जैसा कि इसके नाम से ही प्रकट होता है कि यह रचना विजयसेन सूरि के स्वर्गवास से संबंधित है । सं० १६७२ के कुछ बाद ही इसे मेड़ता में कवि ने पूरा किया होगा । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है सरसति भगवति भारती जी, भगति धरी मनि माय, पाय नमी निज गुरु तणाजी थुणस्युं तपगच्छराय । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १३७ (द्वितीय संस्करण ) २. जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय पृ० १६६-१७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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