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________________ गुणप्रभसूरि - गुणरत्न १२३ पूर्ण ग्रन्थों की संस्कृत टीकायें लिखी हैं जिनसे इन की विद्वत्ता का अनुमान होता है।' मरुगुर्जर भाषा में आपने 'संपति-संजयसंधि' ( गाथा १०६ ) की रचना सं० १६३० श्रावण शुक्ल ५ को पूर्ण की। आपकी दूसरी कृति 'श्रीपाल चौपइ' भी उपलब्ध है। प्रथम रचना से काव्य भाषा एवं काव्यत्व का नमूना देखने के लिए कुछ छन्द आगे उद्धृत किए जा रहे हैं । प्रथम रचना का प्रथम छन्द पणमिय रिसह जिणेसर सामी, पउमावइ प्रणमुसिर नामी । संजय मुणिवर संधि भणेसु, उत्तरज्झयण थकी समरेसु । १ । इसमें उत्तराध्ययन का परिचय भी संजयमुनि की कथा के माध्यम से दिया गया है। कवि जिनचंद्र की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि वे गौतम गणधर के समान ज्ञाता, स्थूलिभद्र के समान शीलवान और वयरकुमार के समान रूपवान थे। उनका तेज सूर्य के समान था । इसका रचनाकाल देखिये-- संवत सोलसइ त्रीसइ ओ, श्रावण सुदिनइ दीसइ अ, जगीसइ ओ पंचमि संपूरण थुणी ओ।२ गुरुपरंपरा-जिनमाणिक्य सूरि सहगुरु, सीस विणयगुण सुरतरु । गणिवर विनय समुद्र मुनिवर भला । तासु सीस इम संथुणइ, मुनि गुणरतन सुगुणभणइ । ओ जिणइ वचन विलास सफल सही । जिनचंद्र सूरि की प्रशंसा में निम्नपंक्तियाँ देखिये खरतर गछि गुरु गाजइ अ, श्री जिन चंद्र सरि राजइ । छाजइ अ गौतम उपमा जेहनइ। तेजइ रवि जिम दीपता, मोह महाभड जीपता । छीपता कसमल मलनवि तेहनइ । सीलइ थलिमद्र सारु ओ, रुपइ वयर कुमारु । उदारु ओ सुरगुरु समवाडि मति करी हैं। धीरम मंदर गिरिवर गंभीरम गुणसागर, आगर दरसण नाण चरण भरी । १. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७६ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५११-१२ (प्रथम संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५११ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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