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________________ १२२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इनकी दूसरी रचना 'दामनक चौपाई'' सं० १६९७ में सरसा नामक स्थान में रची गई। आपकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'मंगलकलशरास' ( ३३० कड़ी ) का निर्माण सं० १६६५ कार्तिक शुक्ल ५ सोमवार को पूर्ण हुआ। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है : पढम जिनेसर पाय नमी आदिनाथ अरिहंत, शत्रुजय भूषण सधर समरइ जे जगिसंत । रचनाकाल-संवत सोल पणसठइ नितकाती मास उदार, अजूआली पंचमि तिथिइ सौम्य कहउं तिथिवार । गुरुपरंपरा -- साधु गुणे करि सोभता गणि श्री ज्ञान प्रमोद, नरनारी सेवइ जि के तिह धरि होइ विनोद तसु गुणनंदन सीस । चरिय कहइ मंगल तणउ, हर्षधरी निसदीस ।' गुणप्रभ सूरि-आप खरतरगच्छ की बेगड़शाखा के प्रसिद्ध आचार्य और साहित्यकार थे । श्री जिनशेखरसूरि ने सं० १४२२ में बेगड़शाखा का प्रवर्तन किया था। १७वीं शताब्दी में जैसलमेर के आसपास इस शाखा का अच्छा प्रभाव था। गुणप्रभसूरि ने 'चित्त संभूत संधि (गाथा १०९) और 'सत्तर भेदी पूजा स्तवन' तथा नवकार गीत आदि की रचना की है। श्री अगरचन्द नाहटा ने लिखा है कि गुणप्रभभुरि, जिनेश्वर सूरि और जिनचन्द्रसूरि १७वीं शताब्दी के उत्तम गीतकार थे। ये अच्छे साहित्यकार तथा उच्चकोटि के आचार्य थे, इनके शिष्य जिनेश्वर सूरि ने अपने गुरु की प्रशस्ति में 'गुणप्रभ सूरि प्रबन्ध' (६१ पद्य ) लिखा है जो ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है। उस प्रबन्ध द्वारा आपके जीवन चरित पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। वाचक गणरत्न --खरतरगच्छ के युगप्रधान जिनचंद्रसूरि के गुरु जिनमाणिक्य सूरि की परंपरा में कई विद्वान् और कवि हो गये हैं। इसमें वादि शिरोमणि वाचक गुणरत्न विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये जिनमाणिक्य सूरि के प्रशिष्य एवं विनयसमुद्र के शिष्य थे । आपने काव्यप्रकाश, रघुवंश, मेघदूत और न्यायसिद्धान्त. आदि. महत्व१. श्री अगरचंद नाहटा - परम्परा पृ० ८५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. ३७७ (द्वितीय संस्करण) ३. श्री अगरचंद नाहटा-परम्परा पृ० ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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