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________________ खइपति - गुणनंदन १२१ लिखे हैं जो संघ निकालने में विशेष सहायता करती थीं।' आपके पदों की भाषा सरल मरुगुर्जर या हिन्दी है, यथा आजु भले आये जन-दिन धनरयणी। शिवयानंदन वंदी रत तुम, कनक कुसुम बधावो मृगनयनी । उज्ज्जलगिरि पाय पूजी परमगुरु सकल संघ सहित संग सयनी । मृदंग बजावते गावते गुनगनी, अभयचन्द्र पट्टधर आयो गजगयनी । अब तुम आये भली करी, घरी घरी जय शब्द भविक सब कहेनी। ज्यों चकोरीचन्द्र कुं इयत, कहत गणेश विशेषकर बचनी । इन गीतों तथा स्तवनों में कवि-हृदय की भावुकता खुलकर व्यक्त हुई है। उपरोक्त गीत भट्टारक अभयचंद्र के स्वागत गान में लिखा गया था । आपने भट्टारक कुमुदचंद्र की स्तुति में भी कई गीत लिखे हैं जिनसे इन भट्टारकों के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं । इनमें से कुछ का उल्लेख भ० कुमुदचंद के सन्दर्भ में हो चका है। ब्रह्मसागर, धर्मसागर, संयमसागर और जयसागर इनके गुरुभाई थे। इनकी कुछ पंक्तियाँ आगे नमूने के रुप में उद्धृत की जा रही है-- गीत-संघवी कहान जी भाइया वीर भाई रे । मल्लिदास जमला गोपाल रे। छपने संवत्सरे उछव अति करयो रे। संघ मेली बाल गोपाल रे । कुमुदचंद्र की बारडोली में पाटप्रतिष्ठा से संबंधित निम्नांकित पंक्तियां देखिये--- बारडोली मध्ये रे, पाट प्रतिष्ठा कीध मनोहार । एक शत आठ कुम्भ रे, ढाल्या निर्मल जल अतिसार । सूरमंत्र आपयो रे, सकलसंघ सानिध्य जयकार। कुमुदचंद्र नाम कह्यां रे, संघवि कुटम्ब प्रतपो उदार । २ गुणनंदन-सागरचंद्र सूरि शाखा के विद्वान् लेखक श्री ज्ञानप्रमोद आपके गरु थे । ज्ञानप्रमोद ने सं० १६८१ में वाग्भट्रालंकार वत्ति लिखी और सं० १६७२ में आपने 'शीतलनाथ स्तवन' लिखा था। इनके 'शिष्य गुणनंदन ने सं० १६७५ में 'इलापुत्ररास' बिहारपुर में लिखी। १. डॉ० कस्तुरचंद कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० १९२ २. गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन पृ० ११९ ३. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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