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________________ १२० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास राजिंद श्रेणिक बनसंचरिउ ।' मृगापुत्र का आदि पुर सुग्रीव सोहामणो मृगपुत्र राजा वलिभद्रराय हो, अंत-केवल पाम्यो निरमलो, पामी सिव सुख ठाम हो, गछ नागौरी दीपता, गुरु क्षेत्रसिंह गुणधाम हो। मुनि खेम भण कर जोड़े, तिकरण सुध प्रणाम हो । सोलसत्तवादी का प्रारम्भ देखिये ब्रह्मचारी चूडामणी जिन शासन शिणगार हो, सतवादी सोले तणा गुण गायां भवपार हो । अन्त- सोल सती गुण गाइया मेडतानगर मझार हो, __ अहिपुर गछ मुनि खेतसी, शिष्य खेम महासुखकार हो । इसका विवरण श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपने संग्रह की हस्तप्रति से दिया था। __गजसागरसूरि शिष्य-अंचलगच्छीय गजसागरसूरि के एक अज्ञात शिष्य ने 'नेमिचरित्र फाग' की रचना सं० १६६५ फाल्गुन ६ बुद्धवार को की। इसकी हस्तप्रति ईडरबाइओं के भण्डार से प्राप्त हई है। इसके अन्त की पंक्तियों में रचना से संबंधित विवरण दिया गया है यथा, सोल पासठि फागुणि छठि अनइ बुधवारि, विधि पक्षि गछि जांणीइ श्री गजसागरसूरि राय, तास शिष्य कहि नेमिनफाग बंधमनोहर ।२ भावि गुणइ जे सम्भलइ तेहघरि जयजयकार । (ब्रह्म) गणेश या गणेशसागर-आप भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य कुमुदचंद्र के शिष्य अभयचंद्र के शिष्य थे। उक्त तीनों भट्टारकों की स्तुति में आपने कई गीत स्तवन लिखे हैं । इस प्रकार के २० गीत एवं पद प्राप्त हैं। इनसे इनके गुरुजनों का परिचय प्राप्त करने में सुविधा होती है। इन्होंने दो पद तेजाबाई की प्रशंसा में भी १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९१-५९२ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ३४३ (द्वितीय संस्करण) २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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