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________________ क्षेमराज - खेम ११९ खइपति-आप सम्भवतः खरतरगच्छीय अमरमाणिक्य के प्रशिष्य एवं साधुकीर्ति के शिष्य थे। साधुकीर्ति के कई शिष्यों ने उनकी स्तुति में पद, गीत आदि लिखे हैं जो साधुकीर्ति जयपताका गीतम शीर्षक के अन्तर्गत ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है । उन्हीं में एक गीत खइपति का भी है। इस संकलन में इसी विषय पर जल्ह, देवकमल और धर्मवर्द्धन आदि अन्य शिष्यों की भी रचनायें संकलित हैं। रचना के समय के सम्बन्ध में निम्न पंक्तियाँ देखिये आगरइ पुरि मिगसरि धुरिवारसी, सोल पंच वीस वरीस जी। पूरव विरुद सही उजवालियउ, साधुकीर्ति सुजगीसो रे । यह कुल सात कड़ी की छोटी रचना है। भाषा सरल मरुगुर्जर है। यह रचना सं० १६२५ की है। इसमें भी खरतरगच्छीय साधुकीर्ति की आगरे में तपागच्छीय बुद्धिसागर से हुई वादविवाद में उनकी जीत पर खशी की अभिव्यक्ति है, एवं साधुकीति को साधुवाद दिया गया है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है श्री जिनदत्त कुशल सूरि सानिधइ, उत्तम पुण्य प्रकरो जी करजोडी नइ 'खइपति' बीनवइ, खरतर जय जय कारो जी' खेम-नागौरी तपागच्छ-पायचंद गच्छ के क्षेत्रसिंह (खेतसी) के आप शिष्य थे। आपने मेडता में 'सोलसत्तवादी' नामक रचना की। आपकी दूसरी रचना 'मृगापुत्र' मात्र १२ कड़ी की छोटी कृति है। तीसरी कृति 'अनाथीसंधि' भी १५ कड़ी की लघु कृति है किन्तु इसमें रचनाकाल दिया हुआ है जिसकी सहायता से उपरोक्त दोनों कृतियों का भी रचनाकाल अनुमानित किया जा सकता है। अनाधीसंधि में रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत सतरै सैदिन आठमि जेसी खरखरी छायाइ खेम सही सञ्झाय प्रकाशी पजूसणरी आ पाखी, कि । अर्थात् यह रचना १७वीं शताब्दी के अन्तिम वर्ष की है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है सरसति सामिणि तुझं समरतां, वाणी द्यउ महाराणी अनाथीराय सञ्झाय भणता, आखर आवे छे ठावका । १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह- श्री साधुकीति जयपताका गीतम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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