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________________ केशवविजय - क्षेमकुशल ११७ क्षेम-आप खरतरगच्छीय जिनभद्रसूरि शाखा में रत्नसमुद्र के शिष्य थे। आपने क्षेत्रसमास बालावबोध लिखा है ।' खेम नामक एक और लेखक हो गये हैं जिनका विवरण 'ख' के अन्तर्गत दिया जा रहा है। क्षेमकलश -आपने सं० १६७० कार्तिक शुक्ल ३ बुधवार को 'अगड़दत्त चौपाई' की रचना की। रचना का उद्धरण तथा लेखक की गुरु परम्परा आदि नहीं प्राप्त हो सकी। क्षेमकुशल-आप तपागच्छीय मेघजी के शिष्य थे। आपने सं० १६५७ वैशाख शुक्ल १०, शुक्रवार को “लौकिक ग्रन्थोक्त धर्माधर्म विचार सूचिका चतुःपदिका (चौपाई) लिखी। सं० १६८२ से पूर्व आपने ४६२ कड़ी की दूसरी रचना रूपसेनकुमार रास रची। इनके अलावा श्रावकाचार चौपाई (७८ कड़ी) और विमलाचल (शत्रजय) स्तवन (४२ कड़ी) नामक दो अन्य रचनायें भी प्राप्त हैं जिनका विवरण दिया जा रहा है। प्रथम रचना में जीवदया, मांसभक्षणत्याग, मद्यत्याग और अतिथि सेवा आदि बीस अधिकार हैं। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है सरसति देवी समरुं निशिदीस, श्री गुरु चरणे नामी सीस । बोलू धर्माधर्म विचार, जे जाणइ जीव तरइ संसार । सर्वधर्म सांभलवा सही, अहि बात परमेश्वरि कही ते माहिलो तत्व विचार, ग्रही कीजइ नित आतमसार । रचनाकाल - इंदु रस वाण मुनि जाणि, इणइ संवतसरि चही प्रमाणि । वैशाख सुदि दसमी शुक्रवार, रवियोगई वेद पदिका सार । गुरुपरम्परा-तपगछमंडण मेह मुणिंद, क्षेमकुशल सुख परमाणंद । इससे पूर्व आपने हीरविजय, विजयसेन का उल्लेख किया है। रूपसेनकुमार रास-आदि१. श्री अगर चन्द नाहटा--परम्परा पृ० ८६ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९६१ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १५९-१६० (द्वितीय संस्करण) ३. वही, भाग १ पृ० ४६९; भाग ३ पृ० ९४२-९४४ (प्रथम संस्करण) ___ और भाग २ पृ. ३०३-३०५ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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