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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी अन्तिम कड़ी निम्नवत् हैरूपजी जीवाजी कुंवर जी, वीरहइ श्री मलजी इषीवर जी, प्रणमी पूज्य तणइ वर पाया, गावइ केशव नित गुरुराया।' आपकी दूसरी रचना 'साधुवंदना' का विवरण अप्राप्त है।
केशव विजय-कीर्तिवर्द्धन (केशव मुनि) के प्रसंग में इनकी चर्चा हो चुकी है और यह आभास हुआ कि ये कीर्तिवर्द्धन से भिन्न व्यक्ति हैं। श्री देसाई के ग्रन्थ जैन गुर्जर कविओ के भाग ३, द्वितीय संस्करण पृ०२३२ पर सम्पादक ने इन्हें केशवमुनि या कीर्तिवर्द्धन से भिन्न माना है। श्री देसाई ने (प्रथम संस्करण) भाग ३ पृ० १०८४ पर कीर्तिवर्द्धन के नाम से इनकी रचना 'सुदेवच्छ सावलिंगा' का विवरण अवश्य दिया था किन्तु सन्देह उन्हें भी था जो नवीन संस्करण में सम्पादक द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है। यथा "वस्तुतः आ केशव विजय नी अलग कृति छे ।" यह रचना कवि ने दूदापुत्र विजयपाल के आग्रह पर लिखी थी। यह ३८४ कड़ी की कृति है और सं० १६७९ माघ वदी १० सोमवार को जालौर में पूर्ण की गई है। रचनाकाल इस प्रकार बताया है
नन्द मुनी षोडस संवछरे (१६७९) माहा वदि दसमी ससीवारे, तपगछ गिरुआ गुणभंडार, नामें विजेदेव सुरी निरधार। भणतां गुणतां सुणंता अह, चातुर चित्त हरखसे तेह; रसीक नर नी रंगसिधात, मुनि केशव कहि जगत विख्यात ।'
कवि ने अपना नाम केशव मुनि दिया है और कीर्तिवर्द्धन भी अपना नाम केशव मुनि बताते हैं परन्तु इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि एक ही नाम के दो ही नहीं अनेक व्यक्तियों का एक ही समय, एक ही सम्प्रदाय या स्थान में होना असम्भव नहीं है ।
क्षमाहंस-आप खरतरगच्छीय विद्वान् थे। आपने सं० १६९७ से पूर्व 'क्षेमबावनी' नामक रचना मरुगुर्जर में की है। इसकी प्रतिलिपि सं० १६९७ माघ कृष्ण १ की श्री कनकरंग द्वारा लिखित प्राप्त है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०९४ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० २३२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही, भाग ३ पृ० १०७९ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ३२०
(द्वितीय संस्करण)
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