SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास केसराज-आपने अपनी गुरु परम्परा इस प्रकार दी है--विजय गच्छीय > विजयऋषि>धर्मदास >क्षमासागर>पद्मसागर>गुणसागर । आपने सं० १६८३ में 'रामयशोरसायन रास की रचना अंतर पुर में की, जो इन पंक्तियों से प्रमाणित होता है-- संवत सोले त्रासीय रे, आछो आसू मास, तिथि तेरसी अंतरपुर मांहि आणी अतिहि उल्हास ।' इसमें वर्णित अन्तरपुर कोई स्थान है या कवि का अन्तःमन है, यह निश्चित नहीं है। जब लगि सायर नो जल गाजे, जब लगि सूरज चंद, केसराज कहे तब लग अ ग्रन्थ करो आनंद । श्री देसाई ने इसका रचना काल सं० १६८३ बताया है किन्तु राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची पाँचवा भाग में रचनाकाल सं० १६८० बताया गया है, यथा-- संवत सोल असीइ रे, आछउ आसो मास तिथि तेरसि ।। इसकी प्रति में स्पष्ट चेतावनी दी है कि जिनको प्रति वाँचने का अभ्यास हो वे ही पंचों के आगे उसे पढ़ें । अक्षर, ढाल, राग को भंग करके न पढ़ें बल्कि इस विधि से पढ़ें-- 'अक्षर जांणी ढाल ज जांणी, कागज जांणी एह, पांचा आगे बांचता थी ऊपजि सिद्ध अति नेह ।' इसका प्रारम्भ इस प्रकार किया गया है श्री मुनि सुव्रतस्वामी जी त्रिभुवन तारणदेव, तीर्थङ्कर प्रभु तीसमां सुरनर सारे सेव । सुखदाई सहु लोक ने रामकथा अभिराम, श्रवण सुणंत सरे सही मनना वंछित काम । कवि कहता है कि१. जैन गुर्जर कविओ, (प्रथम संस्करण) भाग १ पृ० ५२२-५२४ २. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची ५वां भाग पृ० ४७२-४७३ ३. वही, ५वां भाग पृ० ४७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy