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________________ ११२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'वैसा बाइक सुणी भयउ लज्जित मुणि, सोच करि सुगुरु कइ पास आवइं। चक अब मोहि परी चरण तदि सिर धरि, आप अपराध आपई खमावइ ।' प्रशस्ति संग्रह में इन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय का साधु बताया गया है। अन्यत्र इन्हें खरतरगच्छीय अभयधर्म का शिष्य बताया गया है। अतः इस सम्बन्ध में विशेष शोध अपेक्षित है। कुशलवद्धन-आप तपागच्छीय हीरविजयसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १६४१ में 'जिनचैत्यपरिपाटी स्तवन' सिद्धपुर में लिखी। 'बंधहेतु गर्भित वीर स्तवन' की रचना आपने बडली में की। प्रथम रचना का अन्तिम भाग 'कलश' निम्नांकित है सीधपुर नयर मझारी कीधी चइत परिपाटी भली। जे भणइ भवियण कहइ कवियण तास घरि संपद मिली। तपगच्छ मंडन दुरिय खंडन श्री हीरविजय सूरीसरु, कवि कुशलवर्द्धन सीस पभणइ, सकल संघ मंगल करु । दूसरी रचना का प्रारम्भ देखिएसकल मनोरथ पूण वांक्षित फल दातार, वीर जिणेसर नायक, जय-जय जगदाधार । अन्त-इय वीर जिणवर सयल सुखकर नयर वडली मंडणो, मि थुण्यो भगति भलीय सुगति रोग सोग विहंडणो। तपगच्छ निरमल गयण दिनकर श्री विजयसेन सूरीसरो, कवि कुशलवर्द्धन सीस पभणइ, नग गणि मंगल करो। कुशलसागर-तपागच्छीय विजयसेनसूरि के शिष्य राजसागर आपके गुरु थे। आपने सं० १६४४ आसो वदी अमावस्या, शुक्रवार को 'कुलध्वजरास' की रचना की इसका आदि देखिये सांत्य जिणेसर पायनमू, जस जन्मह हुइ सांति, १. डॉ० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० ११७ २. कस्तूर चन्द कासलीवाल-प्रशस्ति संग्रह पृ० १७ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २६८-२६९ ४. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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