________________
वाचक कुशललाभ
१०९:
मारवणीनी मे चउपइ, ओ सुणीज्यो अकमना थइ । जिनपालित जिनरक्षित संधि-(गाथा ८९ सं० १६२१ श्रावणसुदी५), आदि-चरम जिणेसर चरण नमेवि, सद्गुरु वयण रयण समरेवि,
निरमल शील तणइ अधिकारइ, पभणिसु आगमनइ अणुसारइ । रचनाकाल--सोलह सइ इकवीसइ वरसि,
श्रावण सुदि पांचमि शुभ दिवसि । संधि रच्यउ निजमति अनुसारि,
जिम गुरु मुखि संभल्यउ विचार ।२ तेजसार रास अथवा चौपाई (सं० १६२४, वीरमपुर ) का प्रारम्भ
श्री सिद्धारथ कुल तिलु चरम जिणेसर वीर,
पा जुगि प्रणमी तस तणा सोविन्न वन्न सरीर । अन्त-श्री खरतरगच्छि सहि गुरु राय, गुरु श्री अभयधर्म उवझाय ।
सोलह सइ चउवीसिसार, श्री वीरमपुर नयर मझारि । अधिकारइ जिनपूजा तणइ, वाचक कुशललाभ इम भणइ ।
जे वांचइ नर जे सांभलइ, तेहना सहू मनोरथ फलइ ।' इसमें तेजसार के दृष्टान्त से पूजापाठ का प्रभाव दर्शाया गया है।
अगड़दत्त चौपइ अथवा रास (२१८ कड़ी, सं० १६२५ कार्तिक शुदी १५ गुरुवार, वीरमपुर) आदि-पास जिणेसर पाय नमी सरसती मनि समरेवि,
श्री अभयधर्म उवझाय गुरु पय पंकज प्रणमेवि । रचनाकाल-संवत वाण पक्ष सिंणगार, काती सुदि पूनिम गुरुवार,
श्री वीरमपुर नयरि मझारि, करी चौपइ मति अनुसारि । स्तम्मन पार्श्वस्तवन-यह स्तवन प्रकाशित है जो खंभात में लिखा गया था।
'इमि स्तव्यो स्थंभण पास स्वामी नयर श्री खंभात ते।'
गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन अथवा छंद-२३ कड़ी की यह रचना पार्श्वनाथ की स्तुति में लिखी गई हैआदि–सरसति सामनी आप सुराणी वचन विलास विमल ब्रह्माणी
सकल जोति संसार सभाणी, पाद परणमु जोड़ि जुगपाणि । १. जैन गुर्जर कविओ (द्वितीय संस्करण) भाग २ पृ० ८०-८८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org