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________________ वाचक कुशललाभ १०७ राज के नाम से 'पिंगल शिरोमणि' आपने ही लिखा है जो 'परम्परा" (जोधपुर) भाग १३ में प्रकाशित है। तेजसार रास सं० १६२४ वीरमपुर, अगड़दत्तरास सं० १६२५, जिनपालित जिनरक्षित संधि सं० १६३१ एवं शत्रुञ्जय यात्रा स्तवन आदि कुल ११ ग्रन्थ प्राप्त हो चुके हैं। रचना परिचय -श्री पूज्यवाहणगीत ६७ छन्दों की रचना है । इसमें अनेक सरस काव्यात्मक स्थल हैं, यथा--- आब्यो मास अषाढ झबके दामिनी रे, जोवइ जोवइ प्रीयडा बाट सकोमल कामिनी रे । चातक मधुरइ सादिकिं प्रीउ-प्रीउ उचरइ रे, वरसइ घण बरषात सजल सर भरइरे। सांगोपांग उपमा आगे बढ़ती है संवेग सुधारस नीर सबल सरवर भर्या रे, उपशम पालि उत्तंग तरंग वैराग नारे । अनुप्रास की योजना इन पंक्तियों में देखिये गाजइ गगन गंभीर श्री पूज्यनी देशना रे, भवियण मोर चकोर थायइ शुभा वासना रे । इस प्रकार गुरु की वाणी रूप अमृत वर्षा से सप्त क्षेत्र में धर्मोत्पत्ति का सुन्दर रूपक बाधा गया है। इसकी अंतिम पंक्तियां इस प्रकार हैं--- कुशललाभ कर जोड़ि श्री गुरुपय नमइ रे, श्री पूज्यवाहण गीत सुणतां मन रमइ रे । इसमें गुरु-वाणी का माहात्म्य दर्शाया गया है। माधवानल प्रबंधचरित है। इसे माधवानल काम कंदला चौपाई या रास भी कहते हैं । यह रचना सं० १६१६ फागूण शु०१३ रविबार को जैसलमेर में हुई। १. श्री अगर चन्द नाहटा- परम्परा पृ० ७४-७५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २११, भाग ३ पृ० ६८२ (प्रथम संस्करण) एवं भाग २ पृ० ८०८८ (द्वितीय संस्करण) ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह २६वां गीत पृ० ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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