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________________ १०६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उत्पन्न हुई और वे शिष्य बने । इनका साहित्य विशाल, बहुआयामी है और भाषा अलंकार युक्त एवं प्रवाहमयी है। इन्होंने वीर, शृंगार और शान्त रसों की धारा बहाई है तथा भक्ति और अध्यात्म का संदेश दिया है । नेमि-राजुल के मार्मिक प्रसंग पर रची इनकी रचनाओं में जो लालित्य, रसप्रवणता और साहित्यिक सौष्ठव है वह जैनमरुगुर्जर साहित्य में निश्चित रूप से श्रेष्ठ स्थान का अधिकारी है । परदारो परशील सञ्झाय, शीलगीत आदि कुछ शुष्क एवं उपदेशपरक रचनायें भी आपने एक धार्मिक आचार्य की स्थिति में लिखा है पर आप वस्तुतः उच्चकोटि के साहित्यकार थे और आपकी रचनाओं विशेषतया पदों को हिन्दी भक्तिकाल के श्रेष्ठ पद लेखकों-तुलसी, सूर आदि के मेल में रखा जा सकता है। इनके विशाल साहित्य को देख कर ऐसा लगता है कि ये चिन्तन, मनन एवं धर्मोपदेश के अतिरिक्त अपना अधिक समय साहित्य सृजन में ही लगाते थे। इन्होंने बड़ी सजीव, रसानुकूल एवं प्रांजल भाषा में शान्त, वियोग, वीर, शृङ्गार आदि रसों और अध्यात्म, धर्म, दर्शन और भक्ति भावों की अच्छी अभिव्यञ्जना की है। डा० हरीश ने इनका समय सं० १६४५ से संम्वत् १६८७ तक दिया है। सं० १६४५ इनका जन्म संवत् हो सकता है किन्तु सं० १६८७ निधन तिथि नहीं होगी। इस सम्बन्ध में निश्चित सूचना नहीं है। शोध की अपेक्षा है। वाचक कुशललाभ-खरतरगच्छीय अभयधर्म आपके गुरु थे। जैसलमेर के रावल मालदेव के कुंवर हरराज के आग्रह पर इन्होंने लोककथाओं पर आधारित दो प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय कृतियाँ प्रस्तुत की-(१) ढोलामारु रा दूहा और (२) माधवानल कामकंदला । प्रथम रचना काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित है और हिन्दी पाठकों के लिए सुपरिचित है। कामकंदला गायकवाड़ ओरियन्टल सीरीज में प्रकाशित है। इससे इन रचनाओं की लोकप्रियता और महत्ता का पता चलता है । इनकी तीसरी रचना 'श्री पूज्य वाहणगीत' ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है । इनके अलावा नवकार छन्द, गौड़ी पार्श्वनाथ छन्द, स्थूलिभद्र बत्तीसी भी आपकी प्राप्त रचनायें हैं जिनमें काव्य की सरसता और भाषा की प्रौढ़ता दर्शनीय है। हर१. डॉ० हरीश शुक्ल-जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी सेवा पृ० १०९-११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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