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भट्टारक कुमुदचन्द्र
१०३ गुजरात एवं राजस्थान में साहित्य, अध्यात्म और धर्म की त्रिवेणी बहाई । आपकी छोटी-बड़ी २८ रचनायें और ३७ से अधिक स्फुटपद प्राप्त हैं। आपने नेमि-राजुल के चरित्र पर आधारित कई सुन्दर रचनायें की हैं। भरत बाहुवली छन्द, आदिनाथ विवाहलो और नेमीश्वर हमची आपकी उल्लेख्य रचनायें हैं। इनमें भरत बाहबली छन्द ( रचनाकाल सं० १६७०) खण्डकाव्य है। बाहुबलि पोदनपुर के राजा थे। भरत का दूत जब उस नगर के समीप जाता है, उस समय की शोभा का वर्णन मनोहर है, यथा--
कलकारं जो नलजल कुंडी, निर्मल नीर नदी अति ऊंडी। विकसित कमल अमल दलयंती, कोमल कुमुद समुज्वल कंती। बनवापी आराम सुरंगा, अम्ब कदम्ब उदुम्बर तुगा । करणा केतकी कमरख केली, नव नारंगी नागरबेली।
भाषा अनुप्रास युक्त एवं प्रवाहपूर्ण है। जिसमें वीर और शान्तरस की प्रमुखता है । आदिनाथ विवाहलो भी खण्डकाव्य है । इसकी रचना सं० १६७८ घोघानगर में हुई। इसकी शैली अलंकृत है। उपमा का एक उदाहरण देखिये--
सुन्दर वेणी विशाल रे, अरध शशी सम भाल रे।
नयन कमलदल छाजे रे, मुख पूरण चन्द्रराजे रे । नेमिराजुल गीत, नेमिनाथ बारहमासा नेमिराजुल पर आधारित मधुर रचनायें हैं। राजुल की विरह वेदना का वर्णन बारहमासे में मार्मिक है यथा
फागुण केसु फूलियो नरनारी रमे वर फाग जी, रास विनोद करे घणां किम नाहे धर्यो वैराग जी।'
नेमिराजुल गीत मधुर भक्तिभावपूर्ण है। राजुल के रूप का वर्णन देखिये
'रूपे फूटडी मिटे जूठडी बोलि मीठडी वाणी, विद्रुम ऊठडी पल्लव गोठडी रसनी कोटडी वखाणी रे। सारंग वयणी सारंग नयणी, सारंग मनी श्यामाहरी,
लम्बी कटि भमरी बंकी शंकी हरिनी मार रे।२ १. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० १४२ २. वही पृ० १३८
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