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________________ ९६ रचनाकाल एवं स्थान मरु - गुर्जर जैन साहित्य का वृद्ध इतिहास मां पाटण मांहि खंति, भेटा श्री नारिंग पास रे । संवत पूरणं इंदु से निरखु वसु वसुधामां उल्हास रे । इससे सं० १६८१ रचनाकाल सिद्ध होता है अतः १५८१ से छपा लगता है । यह रचना कीर्तिरत्न की है और वे तेजरत्न के शिष्य हैं, जो इन पंक्तियों से प्रमाणित होता है- भूल " जे भणि अ स्तवन अनोपम, ते घरि ऋद्धि बिलास रे, श्री कीरतिरत्न सूरीश्वर पभणि, पूरो अमारी आसरे ।" कलश इम नाभिनन्दन जगत्रवंदन स्वामी श्री रिसहेसरो, शेत्रु जमंडण दुरितखंडण वंछितदायक सुरतरो । सवि आसपूरण दुखचूरण ध्यान तोरुं चित्त धरो, श्री तेजरत्न सूरिंद सीसइ थूनिया से मंगलकरो । ' गोड़ी पार्श्वस्तवन नामक एक रचना तेजरत्नसूरि शिष्य के नाम से मिली है । बहुत सम्भव है कि यह शिष्य कीर्तिरत्नसूरि ही हों । यह कृति सं० १६१६ का० शुक्ल २ रविवार को रची बताई गई हैं । दोनों रचनाओं में समय का लम्बा अन्तराल है इसलिए यह कोई अन्य शिष्य भी हो सकता है किन्तु इस सम्भावना से एकदम इनकार भी नहीं किया जा सकता कि तेजरत्नसूरि के शिष्य कीर्तिरत्नसूरि ही इसके भी रचयिता हों । मुझे ऐसा लगता है कि रचनाकाल निकालने में भूल हुई है । स्वयं कवि ने रचनाकाल इस प्रकार बताया है ―― संवत सोल वसू आ जासणो फागण सुद वीजा रविवार गणो । २ यहाँ 'सोल वसू अदुआ' का अर्थ १६१६ लगाया गया है पर वसू= आठ रचनाकाल का दूना १६ करने के बजाय ८ के आगे दो (२) रखना चाहिए अतः रचनाकाल सं० १६८२ मानना उचित होगा । ऐसा १. श्री देसाई – जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६८७ (प्रथम संस्करण) २. जैन गुर्जर कविओ (द्वितीय संस्करण) भाग २ पृ० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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