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________________ कृष्णदास कीर्तिरत्नसू रि ९५ दुर्जनसाल के गुरु हीरविजय ने लाहौर में एक मन्दिर बनवाया और गुरु की आज्ञा से दुरजनसाल ने संघयात्रा निकाली । प्रस्तुत बावनी में ये सभी तथ्य अंकित हैं । श्री भगवानदास तिवारी ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी जैन साहित्य' में इनकी अन्य दो पुस्तकों का भी उल्लेख किया है - ( १ ) अध्यात्म बावनी ( २ ) अनादि संवाद शतक । दुरजनसाल बावनी का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है - - ऊंकार अनन्त आदि सुरनर मुनि ध्यावहीं, जिके पंचपरमिष्ठ सुनउ सब इसि महि पावइ । X X सो सिवरमा निरमल बुद्धि दे सकल लोक मन भावनी, दुरजनसाल संघपति कहइ वसुधा विस्तर बावनी । रचनाकाल - सोलह सइक्यावना वीर विक्रम संवछर, मीनचन्द ओ दसीवरन विधि बावन अक्षर । अन्त - संघाधिपत्ति नानू सुतनूं दुरजनसाल धरम्मधुर, कहि किश्नदास मंगलकरन हीरविजय सूरींद गुरु ।"" इस रचना का सन्दर्भ 'सूरीश्वर अनेक सम्राट्' में भी आया है । इसकी भाषा हिन्दी है । X कीतिरत्नसूरि-- आप तपागच्छीय तेजरत्नसूरि के शिष्य थे । तेजरत्न सूरि का प्रतिमालेख सं० १६१५ का लिखा हुआ प्राप्त है अतः उनके शिष्य कीर्तिरत्न सूरि अवश्य १७वीं शताब्दी के लेखक होंगे और उनकी रचना 'अतीत अनागत वर्तमान जिनगीत' का रचनाकाल भी १७वीं शताब्दी ही होगा । जैन गुर्जर कविओ भाग २ (द्वि. सं.) पृष्ठ १ पर इसका रचनाकाल सं० १५८१ अशुद्ध प्रतीत होता है । प्रथम संस्करण में श्री देसाई ने इन्हें १७वीं शताब्दी में रखा है किन्तु रचना का समय नहीं दिया है । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है सकल सुरासुर जपइ जस नाम, पयपंकज प्रणमु अभिराम । अतीत अनागते वर्तमान सार, नाम सुणतां रे हर्ष अपार । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३०९ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० २७५ (द्वितीय संस्करण ) २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६८७ (प्रथम संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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