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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हवइ श्री गुरु संघ आगलि कवियण करइ अरदास,
ते सुणज्यो तम्हें सज्जन उत्तम मति सविलास , रास के अन्त में भी कवियण शब्द आया है यथा
तां चिर जयउ चतुरबिध श्री संघसु एह रास,
इम जंपइ कवियण आणी बुद्धि प्रकाश । प्रसिद्ध कवि समयसुन्दर उपाध्याय ने भी 'चौबीसी' लिखी है। परन्तु दूसरे कवियण की 'चौबीसी' उससे भिन्न है। इसलिए यह अनुमान होता है कि इस चौबीसी के लेखक कवियण का वास्तविक नाम भी समयसुन्दर रहा होगा और वे खरतरगच्छीय सकलचन्द के शिष्य समयसुन्दर उपाध्याय से भिन्न व्यक्ति थे। हो सकता है कि प्रस्तुत चौबीसी, पांचपांडवसंझाय और स्थूलिभद्ररास के कर्ता एक ही कवियण हों जिनका वास्तविक नाम समयसुन्दर रहा हो। इस विषय में शोध अपेक्षित है।
कृपासागर--तपागच्छीय विद्यासागर के शिष्य थे। आपने 'नेमिसागररास' सं० १६७२ में लिखा जो प्रकाशित रचना है। यह १३५ कड़ी की रचना उज्जयिनी में लिखी गई। इसका आदि इस प्रकार है
सकल मंगल सकल मंगल मूल भगवंत,
शान्ति जिणेसर समरीइरिद्धि वृद्धि सविसिद्धि कारण । यह रचना 'जैन ऐतिहासिकरास माला' में प्रकाशित है। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है--
संवत सोल विहुत्तरइ नयर उजेणी मझार जी। मागसिर शुदि बारस दिने थुणिउ श्री अणगारो जी। वाचक विद्यासागर तास पंचायणा सीसो जी,
विबुध कृपासागर कहि पूरो सकल जगीसो जी। कृष्णदास-ये पंजाब में लाहौर के निवासी थे। इन्होंने सं० १६५१ में 'दुर्जनसाल बावनी' नामक प्रसिद्ध रचना लाहौर में लिखी । दुर्जनसाल ओसवालवंशीय जड़ियागोत्रीय जगशाह के वंशधर थे। १. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा ९० २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४८४-८५ और भाग ३ पृ० ९६३ (प्रथम
संस्करण) तथा भाग ३ पृ० १७३-१७४ (द्वितीय संस्करण)
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