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कवियण
१३६ पद्यों के इस रास में उस समय की सभी प्रमुख ऐतिहासिक घटनायें वर्णित हैं। उसी समय मानसिंह को सूरिजी का पट्टधर बना कर उन्हें जिनसिंह सूरि नाम दिया गया, उसी समय गुणविजय, समयसुन्दर आदि विद्वानों को उपाध्याय की पदवी दी गई थी।
दूसरे कवियण ने चंदाउला छंद में २४ जिनस्तवन या चौबीसी लिखी जिसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार है--
'तुझ गुण गाऊं कथारसे में समकित गुण दिपाव्यो रे
कवियण जग मां जीतना पण गुहिर निसांण वजाव्यारे ।' इसका रचना काल सं० १६५२ से पूर्व बताया गया है। इन्हीं कवियण की दूसरी रचना 'पांचपांडवसञ्झाय' है जिसकी अन्तिम पंक्तियों से ज्ञात होता है कि ये तपागच्छीय हीरविजयसूरि की परम्परा से सम्बन्धित थे, यथा
श्री हीरविजयसूरि गछ धणी, तपगछ नो उद्योतकार रे ।
करजोड़ी कवियण कहे, मुझ आवागमन निवारो रे । वहीं इनकी दो रचनाओं–तेतलीपुत्ररास और अमरकुमाररास का मात्र नामोल्लेख प्राप्त होता है।
श्री मो० द० देसाई ने प्रसिद्ध कवि समयसुन्दर उपाध्याय से पहले एक अन्य समयसुन्दर का उल्लेख किया है। उन्हें भी कवियण कहा है और इनकी रचना 'स्थूलिभद्ररास' का विवरण दिया है। यह रचना सं० १६२२ हेमन्त ५, बुधवार को लिखी गई । पता नहीं ये चौबीसी वाले कवियण हैं अथवा अन्य । स्थूलिभद्ररास में समयसुन्दर और कवियण दोनों नाम आये हैं, यथा
भविक नरनइ प्रतबोध दायक मिथ्यात तमहर दिणयरो, ते थुलिभद्र सयल संघनइ समयसुन्दर मंगलकरो ।९५१
१. जैन गुर्जर कवियो भाग १ (प्रथम संस्करण) पृ० १५९ २. वही, भाग ३ (प्रथम संस्करण) पृ० ८४४ ३. बही
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