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________________ x मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास किन्तु दूसरी रचना 'वीसी' निर्विवाद रूप से आपकी ही है और श्रेष्ठ रचना है। उसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है__ "श्री सीमंधर साभलउ, अक मोरी अरदासो, सगुण सोहावा तुम बिना, रयणी होइ छमासो, जीवन जग घणी।" अन्त -कल्याणसागर प्रभु सुं रमि जी, हरीय फरी मुझ मीट । "दरसन द्यउ जिनवर तम्हें, भगवंत वछल भगवंत रे, कल्याणसागर प्रभु महारा अतुलीबल अरिहंत रे।"१ कल्याणसागर (II)-आप गुणसागर सूरि के शिष्य थे। आपने आषाढ़ शुक्ल १३ सं० १६९४ में 'दानशील तपभाव तरंगिणी' की रचना उदयपुर में की। श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (प्रथम आवृत्ति) के पृ० १६१० पर इस संबंध में मात्र इतना ही उल्लेख किया है। कवियण-जैन साहित्य में कई कवियण नामधारी कवियों का पता चलता है। एक कवियण विमलरंग मुनि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६४८ में श्री जिनचन्द्र सूरि अकबर प्रतिबोध रास' नामक प्रसिद्ध ऐतिहासिक रचना अहमदाबाद में की थी। यह रचना ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह के पृ० ५७-५८ पर संकलित-प्रकाशित है। इसमें युगप्रधान जिनचन्द्रसरि और सम्राट अकबर के मिलन के समय की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है। इससे ज्ञात होता है कि बीकानेर के राजा रायसिंह के प्रधान मंत्री कर्मचंद द्वारा जिनचन्द्रसूरि की प्रशंसा सुनकर अकबर को उनके दर्शन की इच्छा हुई । सूरि जी मानसिंह से सन्देश प्राप्त कर विहार करते हुए लाहौर गये जहां अकबर ने उनका सम्मान किया और युगप्रधान पद दिया-- 'युगप्रधान पदवी दिद्ध गुरु कूँ, विविध बाजा बाजिया। बहुदान मानइ गुणह गानइ, संघ सवि मन गाजिया ।१५।४ १. जैन गुर्जर कविओ (नवीन संस्करण) भाग २, पृ० २६९ २. श्री अगरचन्द नाहटा-राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २३० ३. मंत्री कर्मचंद बीकानेर नरेश कल्याण मल्ल, तत्पश्चात् रायसिंह के भी __ मंत्री थे। इन्हीं के समय वे अकबर के दरबार में आये थे। ४. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ५७-५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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