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________________ कल्याण विजय • कल्याणसागर अंतिम वीर जिणेसर संघ सरोज सहस्र करा, चउवीस कवित्त विनोद नवरसे थुणिया भुवणचित्तहरा, विजयादिमसेन मुणिंद विनेय कहि कवि कल्याणकरा, कमलोदय कारण केवलनाण विलास जयंकर कीर्तिधरा ।२५ इसकी सं० १८१८ की लिखित प्रति प्राप्त है। कल्याणसागर -आप अंचलगच्छ के ६४ वें पट्टधर थे। आपके पिता लोहाड़ा ग्राम निवासी कोठारी नानिग थे और माता नामिल दे थीं। आपका जन्म सं० १६३३ में हआ। बचपन का नाम कोडण था। आपने सं० १६४२ में धवलपुर में दीक्षा ली और सं० १६४९ में आपको अहमदाबाद में आचार्य पद प्रदान किया गया। सं० १६७० में आपको पाटण में धूमधाम के साथ गच्छेश पद प्रदान किया गया। आपने कच्छ देशाधिपति को प्रतिबोध देकर वहाँ जीवों का शिकार बन्द कराया था। इनकी प्रेरणा से नवानगर के श्रेष्ठी शा० वर्द्धमान ने जिनप्रासाद का निर्माण कराया था। आपने अनेक जिनालयों और जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा कराई थी, ये वस्तूतः बड़े प्रभावशाली आचार्य थे। ८५ वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हुआ। __ रचनायें-आपकी दो रचनायें उपलब्ध हैं। आपकी प्रथम प्रसिद्ध कृति 'बीसी' या बीस विहरमान जिनस्तुति है और द्वितीय का नाम है "अगड़दत्तरास"। अगड़दत्तरास का रचनाकाल श्री देसाई ने पहले सं० १५१० के आसपास बताया था। फिर वही आगे उसका रचनाकाल सं० १६४९ से १७१८ के बीच बताया है। अतः यह रचना इन्हीं कल्याणसागर की सं० १६४९ के आसपास की मानी जानी चाहिये । जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण के संपादक का विचार है कि यह रचना स्थानसागर की हो सकती है किन्तु डॉ० हरीश शुक्ल ने इसे इन्हीं की गुजराती कृति कहा है। यह रचना विवादास्पद है १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (प्रथम संस्करण) पृ० १५०५, भाग २ (नवीन संस्करण) पृ० २८९ २. वही, भाग १ पृ० ४८९ ३. डॉ० हरीश शुक्ल- जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी कविता को देना पृ० १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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