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________________ कल्यागकीर्ति - कल्याणचन्द्र ८९ कवि ने सं० १६९२ में 'चारुदत्त प्रबन्ध' की रचना की। इसका नाम चारुदत्त रास भी मिलता है। मंदिर की विशालता का वर्णन करता हुआ कवि कहता है-- मंडप मध्य रे समवसरण सोहि, श्री जिनबिंब रे मनोहर मन मोहि, मोहि जनमन अति उन्नत मानस्तम्भ विलास अ, तिहां विजयभद्र विख्यात सुन्दर जिनसासन रक्षपाल । रचनाकाल-- तिहाँ चोमासि के रचनाकरि सोलवाणु गिरे आसो अनुसारि कल्याणकीरति कहि सज्जनभणो सुणी आदर करि ।' आपकी एक अन्य रचना 'लघु बाहुबलिबेलि' में शान्तिदास के साथ सोममूरति का उल्लेख है किन्तु वह स्पष्ट नहीं है। रचना अच्छी है। अधिकतर दूहा चौपाई छंदों का प्रयोग हुआ है, त्रोटक छंद का भी प्रयोग किया गया है। यह रचना सेठ चारुदत्त के चरित्र पर आधारित है । इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है-- "भरतेस्वर आवीया नाम्युजिनवरशीस जी, स्तवन करी इम जंपए हं किंकर तु ईस जी । श्री कल्याणकीरति सोममूरति चरणसेवक इम भणि, शांतिदास स्वामी बाहुबलि सरण राखु मझ तम्ह तणि ।"२ आप राजस्थानी के अच्छे कवि थे। आपने सं० १६७७ में पार्श्वनाथरास, श्रेणिक प्रबन्ध (कोटनगर सं० १७०५) एवं बधावा तथा कुछ स्फुट पद भी लिखे हैं। आप हिन्दी (मरुगर्जर) के साथ संस्कृत के भी अच्छे लेखक थे। जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन, नवग्रह-स्तवन एवं तीर्थङ्कर विनती आपकी संस्कृत में लिखी उपलब्ध रचनायें हैं। आप १७वीं-१८वीं शताब्दी की संधिकाल के लेखक थे। आपकी भाषा हिन्दी है जिसपर राजस्थानी का स्वाभाविक प्रभाव दिखाई पड़ता है। कल्याणचन्द्र -आप देवचन्द्र के शिष्य थे । आपने सं० १६४९ में 'चित्रसेन पद्मावती रास' की रचना की। एक कल्याणचन्द्र ने १. श्री कस्तूर चन्द कासलीवाल -- राजस्थान के जैन संत पृ० १९७ २. वही १९८ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (प्रथम संस्करण) पृ० ७९६, एवं (नवीन संस्करण) भाग २ पृ० २६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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