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कल्याणसाह
दोष तथा व्रतादि के सुफल पर प्रकाश डाला गया है। वस्तुतः कथा दूसरे उल्लास से ही प्रारम्भ होती है यया 'चंपानगरी सार चांपा बनि करी सोहइ, गढ़मढ़ पोलि प्राकार नर नारी मन मोहइ'।' ____ अवसर निकाल कर कवि ने वसंत वर्णन के बहाने तमाम वृक्षों की सूची गिनाई है और उत्सवों के साथ हस्तिनी, चित्रिणी, शंखिनी तथा पद्मिनी आदि नारियों का विवरण भी दे दिया है यथा 'पद्मगंधा सुशोभना रंगिराती लाल, भमरा करइ गुजार, करइ क्रीडा हो उड़ाडइ गुलाल । बहुला भेद छइ एहना रंगि राती लाल, परणइ तेह गमार करइ क्रीडा हो उड़ाडइ गुलाल ।
वसंत क्रीड़ा के अन्तर्गत काम कीड़ा का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है
कोई कामिनी निज कंतनइ पुष्प कंदुक मारंति,
कोइ हंसि कोई विलगई, कोई लाजधरी वारंति ।' लेकिन वासुपूज्य यह क्रीड़ा देखकर उल्टे सोचने लगते हैं कि यह मोह की कैसी विडम्बना है ? और सब कुछ त्यागकर दीक्षा का निश्चय कर लेते हैं और
'छसय मित्र साथि करी मनि धरी सिद्धनूं ध्यान,
चारित्र लीइ जगगुरु पामइ चउy न्यान ।' फाग के अन्त में कवि रचनाकाल बताता हआ लिखता है
सोल छन्न माघ मासे सुदि अष्टमी सोमवार,
मनोरम फाग वासुपूज्यनउ सेवक कल्याणकार । इस फाग के बीच-बीच में संस्कृत के पद्य भी हैं जिनसे अनुमान होता है कि कवि संस्कत का भी जानकार रहा होगा किन्तु आमतौर पर मरुगुर्जर भाषा का प्रयोग किया गया है। आपकी चौथी उपलब्ध कति 'अमरगप्त चरित्र' अथवा अमरतरंग भी दो उल्लासों में विभक्त है । यह रचना सं० १६९७ में अहमदाबाद में लिखी गई। रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है--
पोस मास नइ सोल सत्ताणु सुदि तेरसि सोमवार जी,
अमरतरंग कीऊ मनिरंगइ, सुखसंपद तार जी । १. प्राचीन फागु संग्रह पृ० १५८ । २. वही पृ० १९३।
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