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________________ ८६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसके प्रारम्भ में ऋषभदेव, शान्तिनाथ और नेमिनाथ की वंदना है। यह रचना धन्यकुमार के दृष्टान्त द्वारा दान के माहात्म्य पर प्रकाश डालती है। इसके अन्त में साह तेजपाल को गुरु रूप में स्मरण किया गया है। 'वासुपूज्य मनोरम फाग' (सं० १६९६ माह शु० ८ मसोथिरपुर) यह प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित प्रसिद्ध रचना है। ३२८ कड़ी का यह फागु बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के चरित्र पर आधारित है। इसके दो विभाग हैं। उन्हें कवि ने उल्लास कहा है। पहला उल्लास १५६ और दूसरा उल्लास १७२ कड़ी का है। वासुपूज्य चंपापुरी के राजा वसुपूज्य और उनकी रानी जया के पुत्र थे। इन्होंने गृहस्थ जीवन में विवाह, राज्यशासन आदि भोगों से ऊबकर अन्ततः सब त्याग दिया; दीक्षा लिया और तपपूर्वक केवलज्ञान प्राप्त किया। अपना मोक्षकाल निकट जानकर वे चम्पानगरी पधारे और वहीं अनशन पूर्वक निर्वाण प्राप्त किया। इसमें फाग के लक्षण कम रास के अधिक हैं किन्तु लेखक ने इसे बारबार फागु कहा है। इसका छंदबंध देशी ढालों में बँधा है। कवि ने लिखा है पणमीय जिन चउवीस, पाय नमाडीय सीस । वासुपूज्य जिन तणउ ओ, फाग रलीआमणउ ए। फागू ते फागुण मासि लोक ते रमइ उलहासि, रामति नव नवी ए किम जाई वर्णवीए।'' इसके प्रारम्भ में सरस्वती वंदना संस्कृत भाषा में की गई है, यथा 'सरस्वती' नमस्कृत्य प्रणम्य सद्गुरुन्नपि, वक्ष्ये मनोरमं फागं वासुपूज्यजिनस्य च ।'२ प्रथम उल्लास में स्थान-स्थान पर मुख्य कथा को रोककर लेखक जैनाचार के नियमों को दृष्टान्तपूर्वक समझाने लगता है इससे कथा अनावश्यक रूप से विस्तृत तथा अनगढ़ हो गई है। विमलमंत्री पुण्य की महिमा का वर्णन करता हुआ कहता है 'पुण्यइ तनु हुइ निरोग, पुण्य हुई वंछित भोग, पुण्यइ बेटा योग।' इसमें विभिन्न दृष्टान्तों के रूप में गजराज कथा, हंसकेशव की कथा के द्वारा जातिमद, रात्रिभोजन १. प्राचीन फागु संग्रह पृ० १५६ । २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (नवीन संस्करण) पृ० २६२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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