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कल्याण मुनि - कल्याणसाह
नाथ के आकर्षक चरित्र पर आधारित यह रचना सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में ही की होगी । इसलिए यह तिथि तर्क संगत प्रतीत होती है । इसकी कुछ अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
श्री नेमि जिनवर सयल सुषकर दुषहरण मंगलमुदा, श्री रूप जीव जी पटिधारक श्री वरसिंघ जी सुवर सदा । श्री वरसिंह पाटि श्री जसवंत सोभर जिंगम तिर्थ जाणीये, तास सीस पवर मुनिवर श्री पकराज बषाणीये, तास पाटि पंडित सोभि श्री कृष्णदास मुनीसरा, तास सीस कल्याण जंपइ सकलसंघ आणंदकरा । इसका रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है
संवत सोल हुत्तरा वर्षे आसो सुद छठि सार अ, गुरुसवारि नेम गांऊ सिद्धपुर मझारि अ । कहि मुनि मन हटषी आणी संघ जइजइकार अ ।'
(शा) कल्याण या कल्याणसाह - कडवागच्छ के आठवें पट्टधर साह तेजपाल के आप शिष्य थे । आपने सं० १६८५ में 'कटुकमत पट्टावली' लिखी जो 'अर्वाचीन गुजराती गद्य - कडूआमति गच्छ पट्टावली संग्रह' में संग्रहीत एवं प्रकाशित है । आपकी दूसरी रचना 'धन्यविलास रास' या धन्नाशालिभद्र रास ( ४ प्रस्ताव ४३ ढाल ) सं० १६८५ या ८२ में ज्येष्ठ शुक्ल ५ को लिखी गई । इसके अन्त में कवि ने लिखा है
धन्य विलास ना च्यार प्रस्ताव छे, ढाल त्रहतालीस तस प्रमाण' २ रचनाकाल - संवत सोल पंच्यासी संवत्सरि ज्येष्ठ शुदी पंचमी पुण्यमाण, धन्यविलास थयो संपूर्ण दिनदिन संघनि मंगलमाल । इसके पाठान्तर में सं० १६८२ भी मिलता है यथा"सोल व्यासी संवच्छरे ज्येष्ठ सुदि पंचमी पुण्यखाण, धन्यविलास कर्यु संपूरण, होय दिनदिन कल्याण । ३
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ ( प्राचीन संस्करण) पृ० ५११ और भाग ३ ( नवीन संस्करण) पृ० १७८ ।
वही भाग ३ ( नवीन संस्करण) पृ० २६१ ।
३. वही
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