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________________ ८४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुपरंपरा के साथ भी कवि ने अपना नाम इस प्रकार बताया है नाम जपु दिन प्रति गुणराज, संघ चतुर्विध कर जो राज, भलो करी जो उत्तम दरसण, दीठे हुए आणंद । इणि परि कहे गुण करे वखांण ..... करमचन्द । इस रास को चौपाई भी कहा गया है क्योंकि रचना चौपाई, दोहे में बद्ध है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है : संवत सोल सत्यासीये भलो जोग अपार, पुनर्वस नक्षत्र सोहामणो कीओ कवितउदार । गुरु परम्परा का वर्णन करता हुआ कवि कहता है इण परि करमचंद वीनवे, सुणो सहुको तेह, धर्म करो तुम्ह प्राणिया, आणंद हुसइ अह । रचनास्थान--कालधरी नगर अति भलो दीऊइ आवे दाय, इसो बीजे को नहि दीसे जोति सवाइ ।' रास की भाषा मरु प्रधान मरु-गुर्जर है। श्री अगरचंद नाहटा ने भी इनका नामोल्लेख जैन गुर्जर कविओ के आधार पर अतिसंक्षेप में किया है। कर्मसिंह-उपकेशगच्छ के सिद्धिसूरि की परम्परा में देवकल्लोल> पद्मसुन्दरगणि> देवसुन्दरगणि के शिष्य पुण्यदेव के आप शिष्य थे। आपने सं० १६७८ चैत्र शुक्ल १० सोमवार को दशाद्रा में नर्मदासुन्दरी चौपइ की रचना पूर्ण की। इसका अन्य विवरण एवं उद्धरण उपलब्ध नहीं है । कल्याण मुनि-आप लोंकागच्छीय वरसिंह > जसवंत > पकराज > कृष्णदास के शिष्य थे। आपने सं० १६७३ में आसो शुक्ल ६ को सिद्धपुर में नेमिनाथ स्तवन लिखा । वरसिंह जी सं० १६२७ में गद्दी पर बैठे और सं० १६६२ में दिल्ली में स्वर्गवासी हुए थे। इनके पाट पर जसवंत बैठे थे। अतः इनके प्रशिष्य कल्याण मुनि ने नेमि१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (नवीन संस्करण) पृ० २७८-२७९ । २. अगरचन्द नाहटा–परम्परा पृ० ८५ ।। ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ (प्राचीन संस्करण) पृ० ५०९ और भाग ३ ___ (नवीन संस्करण) पृ० २२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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