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कमलसोमगणि - कर्मचंद
८३ __ जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण के सम्पादक श्री जयंत कोठारी ने कमलसोम के आगे प्रश्नवाचक चिह्न लगाकर इसके कर्ता को संदिग्ध घोषित कर दिया है किन्तु कोई निराकरण नहीं दिया है। ___कमलहर्ष-आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में अधिक नहीं ज्ञात हो सका है। आप आगमगच्छ से संबंधित थे। आपने सं० १६४० में 'अमरसेन वयरसेनरास' और सं० १६४३ में 'नर्मदासुन्दरी प्रबन्ध' नामक रचनायें की। नर्मदासुन्दरी प्रबन्ध की प्रति कमलविजय ने नरविजय के पठनार्थ लिखी थी।' ___कर्मचन्द–आपने सं० १६०५ में 'मृगावती चौपइ' की रचना की जिसकी प्रति सोनीपत के पंचायती मंदिर के शास्त्रभण्डार में सुरक्षित है। इस प्रति की सूचना बाबूभाई दयाल जी ने दी है ।२ ये निश्चय ही चन्दनराज रास के कर्ता करमचंद या कर्मचंद से पूर्व हुए होंगे क्योंकि उक्त रास का रचनाकाल सं० १६८७ ज्ञात है। उनका विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रस्तुत कर्मचन्द के सम्बन्ध में इससे अधिक कुछ नहीं ज्ञात हो सका है। ____ करमचंद या कर्मचंद-आप खरतरगच्छीय सोमप्रभ > कमलोदय >गुणराज के शिष्य थे। आपने सं० १६८७ आसो वदी ९ सोमवार को कालधरी में 'चंद राजा नो रास' की रचना की। श्री देसाई ने पहले तो इसे मतिसार की रचना बताया था क्योंकि इसके अंत में 'मतिसार' शब्द आया है । यथा
"चंदन राजा नो चोपइ सुणो जो हरषे मन गहगही, मतसारइ मइ कीऊ प्रबन्ध, जिम हुतो तिम कह्यो समंध ।"८२।३
किन्तु इस शब्द का अर्थ स्पष्ट मति या बुद्धि के अनुसार लगाया जाना चाहिये। रचना में लेखक का नाम करमचंद या कर्मचंद कई बार आया है। इसलिए इसमें शंका की जगह नहीं है । यथा
ओ चोपइ सुणसे जेह, पातक दूरे जाये तेह, सदा हुये अधिक आणंद, बेकर जोड़ी कहे करमचंद ।
१. जैन गुर्जर कविओ (नवीन संस्करण) भाग २ पृ० १८६ २. बाबूभाई दयाल–अनेकान्त वर्ष ५ पृ० २१६ । ३. जैन गुर्जर कविओ (नवीन संस्करण) भाग ३ पृ. २७९ ।
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