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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति यह भी महत्त्वपूर्ण बात है कि व्याकरण की दष्टि से भी अपभ्रंश और मरुगुर्जर की समीपता संस्कृत की तुलना में अधिक है और यह तो सर्वविदित है कि एक परिवार की भाषाओं की एकता का आधार उनके व्याकरण सम्बन्धी नियमों में समानता पर निर्भर होता है। पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर में मरुभाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थानी को अपभ्रंश का जेठी बेटी कहा जाता है। पुरानी हिन्दी से राष्ट्रभाषा हिन्दी का सीधा सम्बन्ध है अतः इन दोनों के व्याकरण सम्बन्धी नियमों पर एक विहंगम दृष्टि डालने से यह स्पष्ट होगा कि किसी समय एक ही प्रस्थान बिन्दु अपभ्रंश से इन दोनों ने अपने-अपने प्रदेशों में अपनी जय यात्रा प्रारम्भ की होगी। पूराने आचार्य यह मानते हैं कि हिन्दी और राजस्थानी की उत्पत्ति एक अपभ्रंश से हुई और उनका विकास भी प्रायः एक सा है। दोनों के व्याकरण में पर्याप्त समानता होने के कारण दोनों भाषाओं की प्रकृति एक जैसी है। राजस्थानी का उच्चारण हिन्दी सरीखा है न कि संस्कृत जैसा । श्री नरोत्तम स्वामी कहते हैं, 'राजस्थानी में हिन्दी सरीखो उच्चारण हुवै, संस्कृत सरीखो नही।' जैसे भैया>भइया, कौवा>कउवा, औषधि > अउषधि इत्यादि । दोनों में दो ही लिंग होते हैं नर और नारी, संस्कृत का नपुंसक दोनों में नहीं है। वचन भी दो ही होते हैं, संस्कृत का द्विवचन गायब है। ये विशेषतायें संस्कृत के व्याकरणबद्ध होने के बाद धीरे-धीरे प्राकृत या बोलचाल की भाषाओं में क्रमशः विकसित हुई होंगी जिनका कुछ आभास अपभ्रंश में मिलता है। छठी विभक्ति विशेषण के काम आती है इसलिए इसमें लिंग और वचन भेद दोनों भाषाओं में समान रूप से पाये जाते हैं जैसे राजा रा घोड़ा, म्हारे ऊपर, पोथी री जिल्द आदि । उपसगों का प्रयोग भी दोनों में समान रूप से होता है जैसे कु (कुकर्म), का (का पुरुष), स (सजातीय) आदि । संस्कृत में ये उपसर्ग नहीं हैं। हिन्दी कृदन्तों के समान राजस्थानी में भी कृदन्तों का प्रयोग होता है। राजस्थानी की वाक्य रचना भी हिन्दी जैसी ही है। पहले कर्ता और वाक्य के अन्त में क्रिया होती है। विशेषण विशेष्य के पहले आता है। इस प्रकार वाक्य में शब्दों का क्रम दोनों में एक जैसा है। राजस्थानी और हिन्दी के शब्द-समूह में तत्सम का बाहुल्य है न कि अपभ्रंश के तद्भव शब्दसमूह का । अपभ्रंश के तद्भव शब्दों के स्थान पर तत्सम का प्रयोग करके अपभ्रंश के पद्यों को मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी के पद्यों के रूप में सुविधा १. श्री नरोत्तम स्वामी 'संक्षिप्त राजस्थानी व्याकरण' पृष्ठ ७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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